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चार बुद्धिमान भाई राजस्थानी लोककथा

चार बुद्धिमान भाई राजस्थानी लोककथा


एक नगर में चार भाई रहते थे । चारों ही भाई अक्ल के मामले में एक से बढ़कर एक थे । उनकी अक्ल के चर्चे आस-पास के गांवों व नगरों में फैले थे, उनमें से एक भाई का नाम सौ बुद्धि, दूजे का नाम हजार बुद्धि, तीसरे का नाम लाख बुद्धि, तो चौथे भाई का नाम करोड़ बुद्धि था ।

एक दिन चारों ने आपस में सलाह कर किसी बड़े राज्य की राजधानी में कमाने जाने का निर्णय किया । क्योंकि दूसरे बड़े नगर में जाकर अपनी बुद्धि से कमायेंगे तो उनकी बुद्धि की भी परीक्षा होगी और यह भी पता चलेगा कि हम कितने अक्लमंद है ? इस तरह चारों ने आपस में विचार विमर्श कर किसी बड़े शहर को जाने के लिए घोड़े तैयार कर चल पड़ते है ।

काफी रास्ता तय करने के बाद वे चले जा रहे थे कि अचानक उनकी नजर रास्ते में उनसे पहले गए किसी ऊंट के पैरों के निशानों पर पड़ी,

" ये जो पैरों के निशान दिख रहे है वे ऊंट के नहीं ऊँटनी के है ।" सौ बुद्धि निशान देख अपने भाइयों से बोला

" तुमने बिल्कुल सही कहा, ये ऊँटनी के ही पैरों के निशान है और ये ऊँटनी बायीं आँख से काणि भी है ।" हजार बुद्धि ने आगे कहा

लाख बुद्धि बोला " तुम दोनों सही हो, पर एक बात मैं बताऊँ ? इस ऊँटनी पर जो दो लोग सवार है उनमें एक मर्द व दूसरी औरत है ।“

करोड़ बुद्धि कहने लगा " तुम तीनों का अंदाजा सही है, और ऊँटनी पर जो औरत सवार है वह गर्भवती है ।"


अब चारों भाइयों ने ऊंट के उन पैरों के निशानों व आस-पास की जगह का निरीक्षण कर व देखकर अपनी बुद्धि लगा अंदाजा तो लगा लिया पर यह अंदाजा सही लगा या नहीं इसे जांचने के लिए आपस में चर्चा कर ऊंट के पैरों के पीछे-पीछे अपने घोड़ों को दौड़ा दिए, ताकि ऊंट सवार का पीछा कर उस तक पहुँच अपनी बुद्धि से लगाये अंदाजे की जाँच कर सके ।

थोड़ी ही देर में वे ऊंट सवार के आस-पास पहुँच गए । ऊंट सवार अपना पीछा करते चार घुड़सवार देख घबरा गया कहीं डाकू या बदमाश नहीं हो, सो उसने भी अपने ऊंट को दौड़ा दिया ।

ऊंट सवार अपने ऊंट को दौड़ाता हुआ आगे एक नगर में प्रवेश कर गया । चारों भाई भी उसके पीछे पीछे ही थ । नगर में जाते ही ऊंट सवार ने नगर कोतवाल से शिकायत की " मेरे पीछे चार घुड़सवार पड़े है कृपया मेरी व मेरी पत्नी की उनसे रक्षा करें ।"

पीछे आते चारों भाइयों को नगर कोतवाल ने रोक पूछताछ शुरू कर दी कि कही कोई लुटेरे तो नहीं ? पूछताछ में चारों भाइयों ने बताया कि वे तो नौकरी तलाशने घर से निकले है यदि इस नगर में कही कोई रोजगार मिल जाए तो यही कर लेंगे । कोतवाल ने चारों के हावभाव व उनका व्यक्तित्व देख सोचा ऐसे व्यक्ति तो अपने राज्य के राजा के काम के हो सकते है सो वह उन चारों भाइयों को राजा के पास ले आया, साथ उनके बारे में जानकारी देते हुए कोतवाल ने उनके द्वारा ऊंट सवार का पीछा करने वाली बात बताई ।

राजा ने अपने राज्य में कर्मचारियों की कमी के चलते अच्छे लोगों की भर्ती की जरुरत भी बताई पर साथ ही उनसे उस ऊंट सवार का पीछा करने का कारण भी पुछा

सबसे पहले सौ बुद्ध बोला " महाराज ! जैसे हम चारों भाइयों ने उस ऊंट के पैरों के निशान देखे अपनी-अपनी अक्ल लगाकर अंदाजा लगाया कि- ये पैर के निशान ऊँटनी के होने चाहिए, ऊँटनी बायीं आँख से काणि होनी चाहिए, ऊँटनी पर दो व्यक्ति सवार जिनमें एक मर्द दूसरी औरत होनी चाहिए और वो सवार स्त्री गर्भवती होनी चाहिए ।"

इतना सुनने के बाद तो राजा भी आगे सुनने को बड़ा उत्सुक हुआ, और उसने तुरंत ऊंट सवार को बुलाकर पुछा " तूं कहाँ से आ रहा था और किसके साथ ?"

ऊंट सवार कहने लगा " हे अन्नदाता ! मैं तो अपनी गर्भवती घरवाली को लेने अपनी ससुराल गया था वही से उसे लेकर आ रहा था ।"

राजा " अच्छा बता क्या तेरी ऊँटनी बायीं आँख से काणी है ?"

ऊंट सवार " हां ! अन्नदाता, मेरी ऊँटनी बायीं आँख से काणी है ।“

राजा ने अचंभित होते हुए चारों भाइयों से पुछा " आपने कैसे अंदाजा लगाया ? विस्तार से सही सही बताएं ।"

सौ बुद्धि बोला " उस पैरों के निशान के साथ मूत्र देख उसे व उसकी गंध पहचान मैंने अंदाजा लगाया कि ये ऊंट मादा है ।"

हजार बुद्धि बोला " रास्ते में दाहिनी और जो पेड़ पौधे थे ये ऊँटनी उन्हें खाते हुई चली थी पर बायीं और उसने किसी भी पेड़-पौधे की पत्तियों पर मुंह तक नहीं मारा, इसलिए मैंने अंदाजा लगाया कि जरुर यह बायीं आँख से काणी है इसलिए उसने बायीं और के पेड़-पौधे देखे ही नहीं तो खाती कैसे ?"

लाख बुद्धि बोला " ये ऊँटनी सवार एक जगह उतरे थे अतः: इनके पैरों के निशानों से पता चला कि ये दो जने है और पैरों के निशान भी बता रहे थे कि एक मर्द के है व दूसरे स्त्री के |"

आखिर में करोड़ बुद्धि बोला-" औरत के जो पैरों के निशान थे उनमें एक भारी पड़ा दिखाई दिया तो मैंने सहज ही अनुमान लगा लिया कि हो न हो ये औरत गर्भवती है ।"

राजा ने उनकी अक्ल पहचान उन्हें अच्छे वेतन पर अपने दरबार में नौकरी देते हुए फिर पुछा -

" आप लोगों में और क्या क्या गुण व प्रतिभा है ?"

सौ बुद्धि बोला " मैं जिस जगह को चुनकर तय कर बैठ जाऊं तो किसी द्वारा कैसे भी उठाने की कोशिश करने पर नहीं उठूँ ।"

हजार बुद्धि " मुझमे भोज्य सामग्री को पहचानने की बहुत बढ़िया प्रतिभा है ।"

लाख बुद्धि " मुझे बिस्तरों की बहुत बढ़िया पहचान है ।"

करोड़ बुद्धि " मैं किसी भी रूठे व्यक्ति को चुटकियों में मनाकर ला सकता हूँ ।"

राजा ने मन ही मन एक दिन उनकी परीक्षा लेने की सोची । एक दिन सभी लोग महल में एक जगह एक बहुत बड़ी दरी पर बैठे थे, साथ में चारों अक्ल बहादुर भाई भी,  राजा ने हुक्म दिया कि “ इस दरी को एक बार उठाकर झाड़ा जाय, दरी उठने लगी तो सभी लोग उठकर दरी से दूर हो गए पर सौ बुद्धि दरी पर ऐसी जगह बैठा था कि वह अपने नीचे से दरी खिसकाकर बिना उठे ही दरी को अलग कर सकता था सो उसने दरी का पल्ला अपने नीचे से खिसकाया और बैठा रहा । राजा समझ गया कि ये उठने वाला नहीं ।


शाम को राजा ने भोजन पर चारों भाइयों को आमंत्रित किया और भोजन करने के बाद चारों भाइयों से भोजन की क्वालिटी के बारे में पुछा ।

तीन भाइयों ने भोजन के स्वाद उसकी गुणवत्ता की बहुत सरहना की पर हजार बुद्धि बोला " माफ़ करें हुजूर ! खाने में चावल में गाय के मूत्र की बदबू थी ।"

राजा ने रसोईघर के मुखिया से पुछा " सच सच बता कि चावल में गौमूत्र की बदबू कैसे ?”

रसोई घर का हेड कहने लगा " गांवों से चावल लाते समय रास्ते में वर्षा आ गयी थी सो भीगने से बचाने को एक पशुपालन के बाड़े में गाडियां खड़ी करवाई थी, वहीं चावल पर एक गाय ने मूत्र कर दिया था, हुजूर मैंने चावल को बहुत धुलवाया भी पर कहीं से थोड़ी बदबू रह ही गयी ।"


हजार बुद्धि की भोजन पारखी प्रतिभा से राजा बहुत खुश हुआ और रात्रि को सोते समय चारों भाइयों के लिए गद्दे राजमहल से भिजवा दिए । जिन पर चारों भाइयों ने रात्रि विश्राम किया ।

सुबह राजा के आते ही लाख बुद्धि ने कहा " बिस्तर में खरगोश की पुंछ है जो रातभर मेरे शरीर में चुभती रही ।"

राजा ने बिस्तर फड़वाकर जांच करवाई तो उसने वाकई खरगोश की पुंछ निकली, राजा लाख बुद्धि के कौशल से भी बड़ा प्रभावित हुआ ।


पर अभी करोड़ बुद्धि की परीक्षा बाकी थी, सो राजा ने रानी को बुलाकर कहा " करोड़ बुद्धि की परीक्षा लेनी है आप रूठकर शहर से बाहर बगीचे में जाकर बैठ जाएं करोड़ बुद्धि आपको मनाने आयेगा पर किसी भी सूरत में मानियेगा मत ।"

और रानी रूठकर बाग में जा बैठी, राजा ने करोड़ बुद्धि को बुला रानी को मनाने के लिए कहा ।

करोड़ बुद्धि बाजार गया वहां से पड़ले का सामान व दुल्हे के लिए लगायी जाने वाली हल्दी व अन्य शादी का सामान ख़रीदा और बाग के पास से गुजरा वहां रानी को देखकर उससे मिलने गया ।

रानी ने पुछा " ये शादी का सामान कहाँ ले जा रहे है ।"

करोड़ बुद्धि बोला " आज राजा जी दूसरा ब्याह रचा रहे है यह सामान उसी के लिए है, राजमहल ले कर जा रहा हूँ ।“

रानी ने पुछा " क्या सच में राजा दूसरी शादी कर रहे है ?"

करोड़ बुद्धि " सही में ऐसा ही हो रहा है तभी तो आपको राजमहल से दूर बाग में भेज दिया गया है ।"

इतना सुन राणी घबरा गयी कि कहीं वास्तव में ऐसा ही ना हो रहा हो, और वह तुरंत अपना रथ तैयार करवा करोड़ बुद्धि के आगे आगे महल की ओर चल दी ।

महल में पहुँच करोड़ बुद्धि ने राजा को अभिवादन कर कहा " महाराज ! राणी को मना लाया हूँ ।"

राजा ने देखा रानी सीधे रथ से उतर गुस्से में भरी उसकी और ही आ रही थी, और आते ही राजा से लड़ने लगी कि " आप तो मुझे धोखा दे रहे थे, पर मेरे जीते जी आप दूसरा ब्याह नहीं कर सकते ।"

राजा भी राणी को अपनी सफाई देने में लग गया ।

और इस तरह चारों अक्ल बहादुर भाई राजा की परीक्षा में सफल रहे ।

चार आने का हिसाब हिंदी लोककथा

चतुर चोर राजस्थानी लोककथा

 चतुर चोर राजस्थानी लोककथा

चतुर चोर
चतुर चोर


बहुत समय पहले की बात है एक छोटे से गांव में एक चोर रहता था, और वह बडा ही चतुर था । उसकी चतुराई देखकर लोग कहते थे कि यदि वह चाहे तो आदमी की आंखों का काजल तक उडा सकता है ।

एक दिन चोर ने सोचा कि जबतक वह राजधानी में नहीं जायेगा और लोगों को अपनी कलाकारी नहीं दिखायेगा, तबतक चोरों के बीच उसकी धाक नहीं जमेगी । यह सोचकर वह राजधानी की ओर रवाना हुआ और वहां पहुंचकर उसने शहर का चक्कर लगाया और जांच परख की, की वह अपना काम कहाँ कर सकता है ।

आखिर उसने तय किया कि वह राजा के महल से अपना काम शुरू करेगा । राजा ने अपने महल की रखवाली के लिए बहुत से सिपाही तैनात कर रखे थे । बिना सैनिकों की नजर में आये, एक परिन्दा भी महल में नहीं घुस सकता था ।

चोर ने यही पर अपनी कलाकारी दिखाने का मन बनाया । चोर ने देखा कि महल की ऊपरी मीनार पर एक बहुत बडी घड़ी लगी थी, जो समय बताने के लिए हर घंटे, जितने बजते थे उतने घंटे बजाती थी । चोर ने दिन में लोहे की कुछ कीलें इकट्ठी की और जब रात को घड़ी ने बारह बजाये तो घंटे की हर आवाज के साथ वह महल की दीवार में एक एक कील ठोकता गया । इस तरह बिना किसी तरह का शोर किये उसने महल की दीवार में बारह कीलें लगा दीं, फिर उन्हें पकड़ पकड़कर वह ऊपर चढ़ गया और महल में दाखिल हो गया । इसके बाद वह छुपते छुपाते खजाने में गया और वहां से बहुत से हीरे चुरा लाया ।

अगले दिन जब राजा को चोरी का पता लगा तो राजा बडा हैरान और नाराज हुआ । उसने सेनापति को आज्ञा दी कि शहर की सड़कों पर गश्त करने वाले सिपाहियों की संख्या दूनी कर दी जाये और अगर रात के समय किसी को भी बेवजह घूमते हुए पाया जाये तो उसे चोर समझकर गिरफ्तार कर लिया जाये ।

जिस समय दरबार में यह ऐलान हो रहा था, एक नागरिक के भेष में चोर वहीं मौजूद था । उसने उनकी सारी योजना सुनी जिससे उसे यह भी मालूम हो गया कि कौन से सिपाही शहर में गश्त के लिए चुने गये हैं । वह वहां से अपने अड्डे पर गया और साधु का वेष धारण करके उन सभी सिपाहियों की बीवियों से जाकर मिला । उनमें से हरएक की पत्नी चाहती थी कि उसका पति ही चोर को पकड़े और राजा से इनाम ले ।

एक एक करके चोर उन सभी औरतों के पास गया और उनके हाथ देखकर बताया कि वह रात उसके लिए बडी शुभ है । उसके पति की पोशाक में चोर उसके घर आयेगा, लेकिन, देखो चोर को अपने घर के अंदर मत आने देना, नहीं तो वह तुम्हें मार देगा । घर के सारे दरवाजे बंद कर लेना और भले ही वह चोर तुम्हारे पति की आवाज में बोलता सुनाई दे, उसका विश्वास मत करना और उसके ऊपर जलते हुए कोयले फेंकना । इसका नतीजा यह होगा कि चोर पकड़ में आ जायेगा । और हां यह बात अपने पति को नहीं बतानी है ।

सारी स्त्रियां रात को चोर के आगमन के लिए तैयार हो गईं । अपने पतियों को उन्होंने इसकी जानकारी नहीं दी । इस बीच पति अपनी गश्त पर चले गये और सवेरे चार बजे तक पहरा देते रहे । हालांकि अभी अंधेरा था, लेकिन उन्हें उस समय तक इधर उधर कोई भी दिखाई नहीं दिया तो उन्होंने सोचा कि उस रात को चोर नहीं आयेगा, यह सोचकर उन्होंने अपने घर चले जाने का फैसला किया । ज्यों ही वे घर पहुंचे, स्त्रियों को संदेह हुआ और उन्होंने चोर की बताई कार्रवाई शुरू कर दी । फल यह हुआ कि सिपाही बुरी तरह जल गये ओर बडी मुश्किल से अपनी स्त्रियों को विश्वास दिला पाये कि वे ही उनके असली पति हैं और उनके लिए दरवाजा खोल दिया जाये । सारे सैनिकों के जल जाने के कारण उन्हें अस्पताल ले जाया गया ।

दूसरे दिन राजा दरबार में आया तो उसे सारा हाल सुनाया गया । सुनकर राजा बहुत चिंतित हुआ और उसने सेनापति को आदेश दिया कि आज रात वह स्वयं जाकर चोर पकड़े ।

उस रात सेनापति ने राजा के आदेशानुसार शहर का पहरा देना शुरू किया । जब वह एक गली में जा रहा था, चोर उसके सामने लड़की का वेष धरकर आ गया । सेनापति ने लड़की से पूंछा रात के इस समय कहाँ जा रही हो कौन हो तुम ?

चोर ने जवाब दिया ″मैं चोर हूँ ।″

सेनापति ने समझा कि लड़की उसके साथ मजाक कर रही है । उसने कहा ″मजाक छोड़ो ! और अगर तुम चोर हो तो मेरे साथ आओ, मैं तुम्हें काठ में डाल दूंगा ।″

लड़की बना चोर बोला ″ठीक है । इससे मेरा क्या बिगड़ेगा ?″ और वह सेनापति के साथ काठ डालने की जगह पर पहुंचा, वहां जाकर चोर ने कहा ″ सेनापति जी ! इस काठ को आप इस्तेमाल कैसे किया करते हैं ? मेहरबानी करके मुझे समझा दीजिए ।″

सेनापति ने कहा “ तुम्हारा क्या भरोसा ! मैं तुम्हें बताऊं और तुम भाग गई तो ?″

लड़की बना चोर बोला ″आपके बिना कहे मैंने अपने को आपके हवाले कर दिया है । मैं भाग क्यों जाऊँगी ?″

सेनापति उसे यह दिखाने के लिए राजी हो गया कि काठ कैसे डाला जाता है । ज्यों ही उसने अपने हाथ-पैर काठ में डाले, चोर ने झट चाबी घुमाकर काठ का ताला बंद कर दिया और सेनापति को राम-राम करके चल दिया । सेनापति समझ गया कि लड़की के भेष में यही चोर है, पर अब क्या हो सकता था ।

जाड़े की रात थी । दिन निकलते-निकलते सेनापति मारे सर्दी के अधमरा हो गया । सवेरे जब सिपाही बाहर आने लगे तो उन्होंने देखा कि सेनापति काठ में फंसे पड़े हैं । उन्होंने उनको निकाला और अस्पताल ले गये ।

अगले दिन जब दरबार लगा तो राजा को रात का सारा किस्सा सुनाया गया । राजा इतना हैरान हुआ कि उसने उस रात चोर की निगरानी स्वयं करने का निश्चय किया । चोर उस समय भी दरबार में मौजूद था और सारी बातें सुन रहा था ।

रात होने पर उसने साधु का भेष बनाया और नगर के सिरे पर एक पेड़ के नीचे धूणी जलाकर बैठ गया ।

इधर रात होते ही राजा ने गश्त शुरू की और दो बार साधु के सामने से गुजरा ।

तीसरी बार जब वह उधर आया तो उसने साधु से पूछा कि ″क्या इधर से किसी अजनबी आदमी को जाते उसने देखा है ?″

साधु ने जवाब दिया कि “ वह तो अपने ध्यान में लगा था, अगर उसके पास से कोई निकला भी होगा तो उसे पता नहीं । यदि आप चाहें तो मेरे पास बैठ जाइए और देखते रहिए कि कोई आता-जाता है या नहीं ।″

यह सुनकर राजा के दिमाग में एक उपाय आया और उसने फौरन तय किया कि साधु उसकी पोशाक पहनकर शहर का चक्कर लगाये और वह साधु के कपड़े पहनकर वहां चोर की तलाश में बैठे ।

आपस में काफी बहस-मुबाहिसे और दो-तीन बार मना करने के बाद आखिर चोर राजा की बात मानने को राजी हो गया और उन्होंने आपस में कपड़े बदल लिये ।

चोर तत्काल राजा के घोड़े पर सवार होकर महल पहुँचा और राजा के सोने के कमरे में जाकर आराम से सो गया । इधर बेचारा राजा साधु बना चोर को पकड़ने के लिए इंतजार करता रहा । सवेरे के कोई चार बजने आये । राजा ने देखा कि न तो साधु लौटा और कोई आदमी या चोर उस रास्ते से गुजरा, तो उसने महल में लौट जाने का निश्चय किया ।

लेकिन जब वह महल के फाटक पर पहुंचा तो संतरियों ने सोचा “ राजा तो पहले ही आ चुका है, हो न हो यह चोर है ! जो राजा का वेश बनाकर महल में घुसना चाहता है । उन्होंने राजा को पकड़ लिया और काल कोठरी में डाल दिया । राजा ने शोर मचाया, पर किसी ने भी उसकी बात न सुनी ।“

दिन का उजाला होने पर काल कोठरी का पहरा देने वाले संतरी ने राजा का चेहरा पहचान लिया और मारे डर के थरथर कांपने लगा । वह राजा के पैरों पर गिर पड़ा । राजा ने सारे सिपाहियों को बुलाया और महल में गया । उधर चोर, जो रात भर राजा के रुप में महल में सोया था, सूरज की पहली किरण फूटते ही, राजा की पोशाक में और उसी के घोड़े पर रफूचक्कर हो गया ।

अगले दिन जब राजा अपने दरबार में पहुंचा तो बहुत ही हताश था । उसने ऐलान किया कि अगर चोर उसके सामने उपस्थित हो जायेगा, तो उसे माफ कर दिया जायेगा और उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जायेगी, बल्कि उसकी चतुराई के लिए उसे इनाम भी मिलेगा ।

चोर जो की पहले से वहां मौजूद था ही, फौरन राजा के सामने आ गया ओर बोला, “ महाराज, मैं ही वह अपराधी हूँ । मैं अपनी कलाकारी दिखाने के लिए यह सब कर रहा था ।″ इसके साथ ही उसने सबूत के रूप में उसने राजा के महल से जो कुछ चुराया था, वह सब सामने रख दिया, साथ ही राजा की पोशाक और उसका घोड़ा भी । राजा ने उसे गांव इनाम में दिये और वादा कराया कि वह आगे चोरी करना छोड़ देगा । इसके बाद से चोर खूब आनन्द से रहने लगा ।

तो दोस्तों आपको ये राजस्थानी लोककथा कैसी लगी कमेंट में बतायें ।

राजस्थानी लोक कथा भूत की मुसीबत