कुम्भलगढ़ दुर्ग का इतिहास
KUMBHALGARH FORT |
कुंभलगढ़ दुर्ग राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित है, अरावली पर्वतमाला की तलहटी पर बना हुआ यह किला पर्वतमाला की पहाड़ी चोटियों से घिरा हुआ है, किले की सागर तल से ऊँचाई 1,914 मीटर है । यह आकर्षक किला एक जंगल के बीच स्थित है, जिसको एक वन्यजीव अभयारण्य में बदल दिया है । यह किला चित्तौड़गढ़ के पश्चात राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा और सबसे सुदृढ किला है, जिसको देखकर कोई भी इसकी तरफ आकर्षित हो सकता है । अगर आप राजस्थान या इसके उदयपुर शहर की यात्रा कर रहे हैं तो कुम्भलगढ़ किला देखें बिना आपकी यात्रा अधूरी है ।
यह राजस्थान का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है । कुंभलगढ़ का किला राजस्थान राज्य के उन पांच पहाड़ी किलों में से एक है, जिसको साल 2013 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था । इस किले का निर्माण महाराणा कुम्भा ने करवाया था । किले के चारों तरफ 36 किलोमीटर लंबी दीवार है जिसकी वजह से इस किले पर विजय पाना काफी मुश्किल है, इसी कारण इस किले को ' अजयगढ ‘ भी कहा जाता था । कुंभलगढ़ के किले की दीवार चीन की दीवार के पश्चात विश्व कि दूसरी सबसे बडी दीवार है ।
इस किले का प्राचीन नाम मछिन्द्रपुर था, जबकि इतिहासकार साहिब हकीम ने इसे माहौर का नाम दिया था । माना जाता है की वास्तविक किले का निर्माण मौर्य साम्राज्य के राजा सम्प्रति ने छठी शताब्दी में किया था । सन 1303 में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण करने से पहले का इतिहास आज भी अस्पष्ट है ।
वर्तमान कुम्भलगढ़ किले का निर्माण सिसोदिया राजाओं ने करवाया था और इसके आर्किटेक्ट एरा मदन था ।
कुम्भलगढ किले को “ मेवाड की आँख “ भी कहा जाता है, यह दुर्ग कई दुर्गम घाटियों व पहाड़ियों को मिला कर बनाया गया है । इससे किले को प्राकृतिक सुरक्षात्मक आधार मिलता है ।
कुंभलगढ़ किले के अधिकतर ऊँचे स्थानों पर महल, मंदिर व आवासीय इमारते बनायीं गई, जबकि समतल भूमि का उपयोग खेती के लिए किया जाता था । वहीं ढलान वाले इलाकों में तालाबों का निर्माण कर इस दुर्ग को स्वाबलंबी बनाया गया ।
कुंभलगढ़ किले के अंदर ही कटारगढ़ किला है जो सात विशाल द्वारों व मजबूत दीवारों से घिरा हुआ है । कटारगढ़ के शीर्ष भाग में बादल महल व कुम्भा महल स्थित है ।
कुंभलगढ़ दुर्ग में ही महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था और एक तरह से यह किला मेवाड़ रियासत की संकटकालीन राजधानी रहा है । महाराणा कुम्भा से लेकर महाराणा राज सिंह के समय तक जब भी मेवाड़ पर आक्रमण हुए, तब राजपरिवार इसी दुर्ग में रहा । यहीं पर कुंवर पृथ्वीराज और राणा सांगा का बचपन बीता था ।
पन्ना धाय ने भी संकट के समय महाराणा उदय सिंह को इसी दुर्ग में छिपा कर पालन पोषण किया था । महाराणा प्रताप ने भी हल्दीघाटी युद्ध के पश्चात इसी किले में शरण ली थी ।
इस दुर्ग के बनने के बाद ही इस पर आक्रमण शुरू हो गए लेकिन एक बार को छोड़ कर ये दुर्ग प्राय: अजय ही रहा है, लेकिन इस दुर्ग की कई दुखांत घटनाये भी है जिस महाराणा कुम्भा को कोई नहीं हरा सका वही शुरवीर महाराणा कुम्भा इसी दुर्ग में अपने पुत्र ऊदा सिंह द्वारा राज्य पिपासा में मारे गए । कुल मिलाकर दुर्ग ऐतिहासिक विरासत की शान और शूरवीरों की तीर्थ स्थली रहा है
इस किले की ऊँचाई के संबंध में अबुल फजल ने लिखा है कि " यह दुर्ग इतनी बुलंदी पर बना हुआ है कि नीचे से ऊपर की तरफ देखने पर सिर से पगड़ी गिर जाती है ।"
कर्नल जेम्स टॉड ने दुर्भेद्य स्वरूप की दृष्टि से चित्तौड़ के बाद इस दुर्ग को रखा है तथा इस दुर्ग की तुलना ( सुदृढ़ प्राचीर, बुर्जों तथा कंगूरों के कारण ) ' एट्रस्कन ' से की है।
किले का स्थापत्य व अन्य
KUMBHALGARH FORT |
दुर्ग की प्राचीर 36 मील लम्बी व 7 मीटर चौड़ी है जिस पर चार घुड़सवार एक साथ चल सकते हैं, इसलिए इसे भारत की महान दीवार के नाम से जाना जाता है ।
किले के उत्तर की तरफ का पैदल रास्ता ' टूट्या का होड़ा ' तथा पूर्व की तरफ हाथी गुढ़ा की नाल में उतरने का रास्ता दाणीवहा ' कहलाता है। किले के पश्चिम की तरफ का रास्ता ' हीराबारी ' कहलाता है जिसमें थोड़ी ही दूर पर किले की तलहटी में महाराणा रायमल के ' कुँवर पृथ्वीराज की छतरी' बनी है, इसे ' उड़वाँ राजकुमार ' के नाम से जाना जाता है । पृथ्वीराज स्मारक पर लगे लेख में पृथ्वीराज के घोड़े का नाम ' साहण ' दिया गया है।
किले में घुसने के लिए आरेठपोल, हल्लापोल, हनुमान पोल तथा विजयपोल आदि दरवाजे हैं । कुम्भलगढ़ के किले के भीतर एक लघु दुर्ग कटारगढ़' स्थित है जिसमें ' झाली रानी का मालिया ' महल प्रमुख है ।
कुम्भलगढ़ किले की दीवार का निर्माण महाराणा कुम्भा ने करवाया था। यह विश्व कि दूसरी सबसे लम्बी दीवार है ।
गणेश मंदिर
गणेश मंदिर को किले के अंदर बने सभी मंदिरों में सबसे प्राचीन है, जिसको 12 फीट के मंच पर बनाया गया है । इस किले के पूर्वी किनारे पर 1458 ईसवी दौरान निर्मित नील कंठ महादेव मंदिर स्थित है ।
वेदी मंदिर
राणा कुंभा द्वारा निर्मित वेदी मंदिर हनुमान पोल के पास स्थित है, जो किले में पश्चिम दिशा की ओर है । वेदी मंदिर एक तीन-मंजिला अष्ट कोणीय जैन मंदिर है जिसमें छत्तीस स्तंभ हैं, मंदिर को महाराणा फतेह सिंह द्वारा पुर्ननिर्माण किया गया था ।
पार्श्वनाथ मंदिर
पार्श्व नाथ मंदिर का निर्माण 1513 ईसवी में किया गया । किले में बावन जैन मंदिर और गोलरा जैन मंदिर प्रमुख जैन मंदिर हैं ।
बावन देवी मंदिर
बावन देवी मंदिर का नाम एक ही परिसर में 52 मंदिरों से निकला है । इस मंदिर के केवल एक प्रवेश द्वार है । बावन मंदिरों में से दो बड़े आकार के मंदिर हैं जो केंद्र में स्थित हैं । बाकी 50 मंदिर छोटे आकार के हैं ।
कुंभ महल
गडा पोल के करीब स्थित कुंभ महल राजपूत वास्तुकला के बेहतरीन संरचनाओं में से एक है ।
बादल महल
राणा फतेह सिंह द्वारा निर्मित यह किले का उच्चतम बिंदु है । इस महल तक पहुंचने के लिए संकरी सीढ़ियों से छत पर चढ़ना पड़ता है ।
कुम्भलगढ़ किले में घूमने का समय
सप्ताह में सभी दिन सुबह 9 से शाम के 6 बजे तक । सम्पूर्ण कुम्भलगढ़ किले में अच्छे से घूमने के लिए कम से कम तीन घंटे चाहिए ।
कुम्भलगढ़ किले में प्रवेश करने की फीस
1. भारतीय दर्शक 10 ₹
2. विदेशी दर्शक 100 ₹
3. किले में कैमरा 25 ₹
Kumbhalgarh |
कुम्भलगढ़ जाने का रास्ता
कुम्भलगढ़ किले से निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर के पास डबोक है जो कुम्भलगढ़ से करीब 95 किमी की दूरी पर स्थित है । डबोक एयरपोर्ट पहुँचने के बाद आप टैक्सी से कुम्भलगढ़ पहुँच सकते है ।
कुम्भलगढ़ से नजदीकी रेल्वे स्टेशन भी उदयपुर ही है जहाँ से आप टैक्सी या बस में कुम्भलगढ़ पहुँच सकते है ।
राजस्थान के सभी प्रमुख शहरों से कुम्भलगढ़ के नियमित बस सुविधा उपलब्ध है । आप बस से वहां पहुँच सकते है ।
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ReplyDeleteExcellent information sir
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