वीर तेजाजी निर्वाण स्थली सुरसुरा
वीर तेजाजी बलिदान स्थल सुरसुरा, अजमेर जिले की किशनगढ़ तहसील में, किशनगढ़ - हनुमानगढ़ मेगा - हाईवे पर किशनगढ़ शहर से उत्तर दिशा में 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । वहीं अजमेर से 40 किलोमीटर उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित है ।
सुरसुरा गांव का इतिहास
तेजाजी के समय में यहाँ विशाल जंगल था, जिसके उत्तर दिशा में 7-8 किलोमीटर की दूरी पर तेजाजी की ननिहाल त्यौद गांव है जबकि उत्तर-पश्चिम दिशा में 25-30 किलोमीटर की दूरी पर तेजाजी की सुसराल पनेर स्थित है । इसी जंगल में तालाब की पाल पर खेजड़ी वृक्ष के नीचे नाग देवता की बाम्बी है, जहां माता रामकुंवरी ( तेजाजी की माता ) नागदेव की पूजा करती थी ।
तेजाजी निर्वाण स्थल धाम सुरसुरा समतल भूमि में बसा है, इसके पश्चिम में जालया मेडिया नामक अरावली पर्वतमाला की पहाड़ी स्थित है, जबकि उत्तर-पश्चिम की तरफ अरावली पर्वत श्रेणी की काबरीया पहाड़ी स्थित है, काबरीया पहाड़ी के पूर्व में, हाइवे से सटी लाछा गुर्जरी द्वारा बड़े-बड़े चौकोर पत्थरों से निर्मित अत्यंत सुंदर प्राचीन बावड़ी बनी हुई है, जिसे लाछां बावड़ी के नाम से जाना जाता है । यहां दो सुंदर और प्राचीन छतरियाँ हैं, जहां आजकल बर्फानी बाबा नमक फक्कड़ साधुबाबा रहता है ।
सुरसुरा के पूर्व में झुमली टेकरी के पास काफी लंबा चौड़ा गोचर जंगल फैला हुआ है । तेजाजी के काल में यहाँ घना जंगल । सुरसुरा के पूर्व तथा दक्षिण में दो विशाल तालाब बने हुए हैं । पश्चिम का तालाब नष्ट प्रायः हो चुका है, उसी तालाब की पाल पर स्थित खेजड़ी के नीचे बासक नाग की बाम्बी थी, वहीं पर आज तेजाजी का विशाल मंदिर बना हुआ है और बासक नाग की बाम्बी आज भी वहीं बनी हुई है और समय समय पर बासक नाग दर्शन भी देते हैं । वर्तमान में सुरसुरा के तीन तरफ जो जंगल है, वह उसी जंगल के अवशेष हैं, जहां कभी लाछां गुर्जरी की गायें चरती थी । वर्तमान सुरसुरा गांव उसी नाग की बाम्बी के चारो तरफ बसा हुआ है ।
लोक कथाओं के अनुसार तेजाजी के देवगति पाने के पश्चात, इसी सुनसान जंगल से एक बार सुर्रा नाम का खाती अपने बैल गाड़ी जोतकर गुजर रहा था । रात्रि हो जाने पर तेजाजी के वीरगति स्थल के पास रात्रि विश्राम के लिए रुका । रात्रि में चोरों द्वारा उसके बैल चुरा लिए गए । लेकिन तेजाजी की कृपा से चोर बैलों को लेकर भागने में सफल नहीं हो सके । सभी चोर रात भर तेजाजी के बलिदान स्थल व काबरिया पहाड़ी के बीच भूलभुलैया के भ्रम में पड़ भटकते रहे । सवेरा होने पर चोर बैलों को लेकर लौटे और सुर्रा खाती को सौपकर क्षमा मांगते हुए चले गए ।
इस घटना के बाद सुर्रा का आस्था और विश्वास तेजाजी के प्रति इतना बढ़ गया कि वह उसी जंगल में बस गया । उसी सुर्रा खाती के नाम पर गाँव का नाम सुरसुरा पड़ा । आम बोलचाल की भाषा में इस गाँव को अब भी सुर्रा ही बोलते हैं ।
वीर तेजाजी मंदिर सुरसुरा
तेजाजी की वीरगति धाम, सुरसुरा में तेजाजी का बहुत ही सुंदर और भव्य मंदिर बना हुआ है । यह मंदिर उसी स्थान पर है जहां बलिदान के बाद आसू देवासी की अगुआई में पनेर और त्योद के कुछ लोगों के साथ ग्वालों ने तेजाजी का दाह संस्कार किया था । इसी स्थान पर तेजाजी की पत्नी पेमल सती हो गई थी । तेजाजी मंदिर के सामने बहुत बड़ी धर्मशाला बनी हुई है, जिसमें तेजाजी की जीवनी चित्रित की हुई है ।
तेजाजी मंदिर का मूल स्थान जमीन की सतह से 3 - 4 फुट नीचें है । यह जमीन की सतह से नीचा इसलिए है, क्योंकि तेजाजी के बलिदान के समय यहाँ एक छोटा सा तालाब था । उसी तालाब की पाल पर खेजड़ी वृक्ष के नीचे बासक नाग की बाम्बी थी, जो आज भी मौजूद है । तालाब का अंदरूनी भाग तेजाजी का बलिदान स्थल एवं दाह संस्कार स्थल होने से तालाब की पाल को साथ लेते हुये तालाब में ही मंदिर बना दिया गया था ।
तेजाजी मंदिर के गर्भगृह में स्वयंभू प्राचीन प्रतिमा से सटकर नागराज की बाम्बी विद्यमान है । लोगों की दृढ़ आस्था विश्वास मान्यता के अनुसार गेहूं रंगाभ श्वेत नाग के रूप में तेजाजी दर्शन देते हैं तो उनको इसी बाम्बी में प्रवेश कराया जाता है ।
सुरसुरा के निवासी
सुरसुरा में मुख्यतः जाट, माली, गुर्जर, ब्राह्मण, वैष्णव, मेघवाल, रैदास, दर्जी, सुनार, कुम्हार, हरिजन, राजपूत, दमामी, मीणा, खटीक, नाई, आचार्य, बागरिया, मुसलमान, नाई, टेली, पिनारा, बिंजारा आदि जातियाँ निवास करती हैं, जिनमें जाट जाति की बहुलता है ।
तेजाजी मेला सुरसुरा
हर साल भादवा सुदी दशमी जिसे तेजा दशमी भी कहा जाता है, इस दिन वीर तेजाजी का विशाल मेला भरता है, जो 3 दिन चलता है । श्रावण और भादवा माह में दूर-दूर से तेजाजी की ध्वज यात्राएँ आती है, साल भर लाखों यात्री तेजाजी धाम दर्शनों के लिए आते हैं ।
तेजाजी धाम सुरसुरा
तेजाजी धाम सुरसुरा आने के लिए आप किशनगढ़ रेलवे स्टेशन से बस या टैक्सी से सुरसुरा पहुंच सकते हैं । किशनगढ़ एयरपोर्ट बनने से आप हवाई जहाज से भी आ सकते हैं । किशनगढ़ से तेजाजी धाम की दूरी मात्र 16 किलोमीटर है ।
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thanks
ReplyDeleteVEER TEJAJI MAHARAJ
ReplyDeleteMy first wife from this village.
ReplyDeleteजय हो तेजाजी की
ReplyDeleteजय हो तेजाजी महाराज की 🙏🙏
ReplyDeleteJai veer teja
ReplyDeleteJai veer Teja ji Maharaj
ReplyDeleteजय श्री तेजा जी महाराज
ReplyDeleteJay ho teja ji
ReplyDeleteजय veer teja
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