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शाकम्भरी माता, साँभर

शाकम्भरी माता, साँभर
  • शाकम्भरी माता का प्राचीन सिद्धपीठ जयपुर जिले के साँभर क़स्बे में स्थित है। शाकम्भरी माता साँभर की अधिष्ठात्री देवी हैं। साँभर एक प्राचीन कस्बा है जिसका पौराणिक, ऐतिहासिक, धार्मिक और पुरातात्त्विक महत्त्व है।
  • इतिहास के अनुसार चौहान वंश के शासक वासुदेव ने सातवीं शताब्दी में साँभर झील और साँभर नगर की स्थापना शाकम्भरी देवी के मंदिर के पास में की। विक्रम संवत 1226 (1169 ई.) के बिजोलिया शिलालेख में चौहान शासक वासुदेव को साँभर झील का निर्माता व वहाँ के चौहान राज्य का संस्थापक उल्लेखित किया गया है।
  • शाकम्भरी के नामकरण के विषय में  उल्लेख है की एक बार इस भू-भाग में भीषण अकाल पड़ने पर देवी ने शाक वनस्पति के रूप में अंकुरित हो जन-जन की बुभुक्षा शांत कर उनका भरण पोषण किया तभी से इसका नाम शाकम्भरी पड़ गया, जिसका अपभ्रंश ही साम्भर है।
  • शाकम्भरी माता का मंदिर साँभर से 18-19 कि.मी. दूर साँभर झील के पेटे में स्थित है, जहाँ दर्शनार्थी श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। साँभर का ऐतिहासिक और पुरातात्त्विक महत्त्व भी अत्यधिक है।
  • शाकम्भरी देवी की पीठ के रूप में साँभर की प्राचीनता महाभारत काल तक चली जाती है। महाभारत (वनपर्व), शिव पुराण (उमा संहिता), मार्कण्डेय पुराण आदि पौराणिक ग्रन्थों में शाकम्भरी की अवतार-कथाओं में शाकादि प्रसाद दान द्वारा धरती के भरण-पोषण  कथायें  उल्लेखनीय हैं।
  • प्रतिवर्ष भादवा सुदी अष्टमी को शाकम्भरी माता का मेला भरता है। इस अवसर पर सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु देवी के दर्शनार्थ यहाँ आते हैं। चैत्र तथा आसोज के नवरात्रों में यहां विशेष चहल-पहल रहती है। यहाँ तीर्थयात्रियों व श्रद्धालुओं के विश्राम हेतु धर्मशालाओं की समुचित व्यवस्था है।
  • देशभर में मां शाकंभरी माता के तीन शक्तिपीठ हैं: पहला प्रमुख राजस्थान से सीकर जिले में उदयपुर वाटी के पास सकराय मां के नाम से प्रसिद्ध है। दूसरा स्थान राजस्थान में ही सांभर जिले के समीप शाकंभर के नाम से स्थित है और तीसरा उत्तरप्रदेश में सहारनपुर से 42 किलोमीटर दूर कस्बा बेहट से शाकंभरी देवी का मंदिर 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
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राजस्थान के पंच पीर

राजस्थान के पंच पीर (Rajasthan ke Panch Peer):  राजस्थान की धरा पर अनैक संत एवं महापुरुषों ने जन्म लिया जिन्होंने विभिन्न धर्मो व जाति-पाति के विवाद को खत्म करते हुए आपसी भाईचारे का संदेश दिया । राजस्थान के लोक जीवन में कई महान व्यक्तित्व देवता के रूप में सदा के लिए अमर हो गए। इन लोक देवताओं में कुछ को 'पीर' की संज्ञा दी गई है। एक जनश्रुति के अनुसार राजस्थान में पाँच पीर हुए हैं। इन्हें 'पंच पीर' भी कहा जाता है, जिनके नाम इस प्रकार हैं-
1. पाबूजी
2. हड़बूजी
3. रामदेवजी
4. मंगलियाजी
४. मेहाजी

राजस्थान के पंच पीरों के बारे में एक प्रसिद्ध दोहा इस प्रकार है:
पाबू, हड़बू, रामदे, मांगलिया, मेहा। पांचो पीर पधारज्यों, गोगाजी जेहा॥

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राजस्थान के संत संप्रदाय

राजस्थान के प्रमुख संत संप्रदाय:

संप्रदाय
प्रवर्तक संत
प्रमुख पीठ
जसनाथी संप्रदाय
जसनाथ जी
कतरियासर बीकानेर
विश्नोई संप्रदाय
जाम्भोजी
मुकाम तालवा नोखा
दादू संप्रदाय
संत दादू जी
नारायणा जयपुर
लालदासी संप्रदाय
संत लालदास जी
शेरपुर धोलीदूब
चरणदासी संप्रदाय
चरणदास जी
दिल्ली
रामस्नेही संप्रदाय
संत रामचरण जी
शाहपुरा
रामस्नेही संप्रदाय
संत दरियाव जी
रैण मेड़ता नागौर
रामस्नेही संप्रदाय
संत हरिरामदास जी
सिंह्थल बीकानेर
रामस्नेही संप्रदाय
संत रामदास जी
खेड़ापा जोधपुर
निरंजनी संप्रदाय
संत हरिदास जी
गाढ़ा डीडवाना नागौर
रामानंदी संप्रदाय
संत श्री कृष्ण दास जी
पयहारी गलत जी जयपुर
रामानंदी संप्रदाय
अग्रदास जी रसिक संप्रदाय
रैवासा सीकर
निम्बार्क संप्रदाय
आचार्य निम्बार्क
सलेमाबाद अजमेर

मल्लीनाथ जी, तिलवाड़ा (बाड़मेर)

मल्लीनाथ जी, तिलवाड़ा (बाड़मेर) | Mallinath Ji
  • मल्लीनाथ जी का जन्म मारवाड़ के रावल सलखा तथा माता जाणीदे के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में सन् 1358 में हुआ था। मल्लीनाथ जी एक कुशल शासक थे। उन्होंने सन् 1378 में मालवा के सूबेदार निजामुद्दीन को हरा कर अपनी वीरता का लोहा मनवाया था।
  • मल्लीनाथ जी ने लगभग सन् 1389 में संत उगमसी माही की शरण में जाकर उनको अपना गुरु बनाया तथा दीक्षा प्राप्त की। दस वर्ष बात 1399 में उन्होंने मारवाड़ में संतों का एक विशाल कीर्तन करवाया।
  • मल्लीनाथ जी निर्गुण निराकार ईश्वर में विश्वास करते थे तथा उन्होंने नाम स्मरण का पुरजोर समर्थन किया। लोकदेवता मल्लीनाथ जी के नाम पर ही जोधपुर के पश्चिम के भाग का नाम मालानी पड़ा जिसे आजकल बाड़मेर कहा जाता है। सन् 1399 में ही चैत्र शुक्ला द्वितीया को उनका देवलोकगमन हुआ।
  • इनका मंदिर तथा स्मारक बाड़मेर जिले में तिलवाड़ा गाँव में है जहाँ प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी एक विशाल पशु मेले का आयोजन किया जाता है। यह बाड़मेर जिले के तिलवाडा गांव में चैत्र बुदी एकादशी से चैत्र सुदी एकादशी (मार्च-अप्रैल) में आयोजित किया जाता है। इस मेले में उच्च प्रजाति के गाय, ऊंटों, बकरी और घोडों की बिक्री के लिए लाया जाता है। इस मेले में भाग लेने के लिए सिर्फ गुजरात से ही नहीं बल्कि गुजरात और मध्य प्रदेश से भी लोग आते हैं।
  • तिलवाड़ा के मल्लीनाथ जी के अलावा एक अन्य संत श्री मल्लीनाथ जी भी थे जो जैनियों के 19 वें तीर्थंकर थे। भगवान मल्लीनाथ स्त्री देह से तीर्थंकर हुए | इसे अच्छेराभुत (आश्चर्य -जनक घटना ) माना गया है | अनन्त अतीत मे जितने भी तीर्थंकर हुए , सभी पुरुष देह मे ही हुए |  मिथिला नरेश महाराज कुम्भ की रानी प्रभावती की रत्नकुक्षी से मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को प्रभु का कन्या रूप में जन्म हुआ |

तेजाजी | Tejaji Maharaj

लोक देवता तेजाजी (Tejaji) का जन्म नागौर जिले में खड़नाल गाँव में ताहरजी (थिरराज) और रामकुंवरी के घर माघ शुक्ला, चौदस संवत 1130 यथा 29 जनवरी 1074 को जाट परिवार में हुआ था ।
  • तेजाजी राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात प्रान्तों में लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं।  किसान वर्ग अपनी खेती की खुशहाली के लिये तेजाजी को पूजता है। तेजाजी के प्रमुख मंदिरों में खरनाल नागौर में तेजाजी का मंदिर एवं सुरसुरा अजमेर में तेजाजी का धाम है
  • लोग तेजाजी के मन्दिरों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं और दूसरी मन्नतों के साथ-साथ सर्प-दंश से होने वाली मृत्यु के प्रति अभय भी प्राप्त करते हैं।  तेजाजी के देवरो में साँप के काटने पर जहर चूस कर निकाला जाता है तथा तेजाजी की तांत बाँध का सर्पदंश का इलाज किया जाता है।
  • तेजाजी की घोड़ी का नाम 'लीलण' था 
  • तेजाजी की कहानी:  एक बार तेजाजी को उनकी भाभी ने तानों के रूप में यह बात उनसे कह दी तब तानो से त्रस्त होकर अपनी पत्नी पेमल को लेने के लिए घोड़ी 'लीलण' पर सवार होकर अपनी ससुराल पनेर गए। रास्ते में तेजाजी को एक साँप आग में जलता हुआ मिला तो उन्होंने उस साँप को बचा लिया किन्तु वह साँप जोड़े के बिछुड़ जाने कारण अत्यधिक क्रोधित हुआ और उन्हें डसने लगा तब उन्होंने साँप को लौटते समय डस लेने का वचन दिया और ससुराल की ओर आगे बढ़े। वहाँ किसी अज्ञानता के कारण ससुराल पक्ष से उनकी अवज्ञा हो गई। नाराज तेजाजी वहाँ से वापस लौटने लगे तब पेमल से उनकी प्रथम भेंट उसकी सहेली लाछा गूजरी के यहाँ हुई। उसी रात लाछा गूजरी की गाएं मेर के मीणा चुरा ले गए। लाछा की प्रार्थना पर वचनबद्ध हो कर तेजाजी ने मीणा लुटेरों से संघर्ष कर गाएं छुड़ाई। इस गौरक्षा युद्ध में तेजाजी अत्यधिक घायल हो गए। वापस आने पर वचन की पालना में साँप के बिल पर आए तथा पूरे शरीर पर घाव होने के कारण जीभ पर साँप से कटवाया। किशनगढ़ के पास सुरसरा में सर्पदंश से उनकी मृत्यु भाद्रपद शुक्ल 10 संवत 1160, तदनुसार 28 अगस्त 1103 हो गई तथा पेमल ने भी उनके साथ जान दे दी। उस साँप ने उनकी वचनबद्धता से प्रसन्न हो कर उन्हें वरदान दिया। इसी वरदान के कारण तेजाजी भी साँपों के देवता के रूप में पूज्य हुए।

श्री सांवलिया सेठ मंदिर, मण्डफिया

श्री सांवलिया सेठ मंदिर, मण्डफिया
  • श्री सांवलिया सेठ मंदिर भगवान श्री कृष्ण को समर्पित एक प्रमुख मंदिर है जो चित्तौड़गढ़ से 40 किमी दूर मण्डफिया ग्राम में स्थित है।
  • श्री सांवलिया सेठ मंदिर में भगवान कृष्ण की काले रंग की प्रतिमा है, इन्हें साँवरिया सेठ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। 
  • किवदंतियों के अनुसार सन 1840 मे भोलराम गुर्जर नाम के ग्वाले को एक सपना आया की भादसोड़ा - बागूंड के छापर मे 3 मूर्तिया ज़मीन मे दबी हुई है. जब उस जगह पर खुदाई की गयी तो भोलराम का सपना सही निकला और वहा से 3 एक जैसे मूर्तिया निकली. सभी मूर्तिया बहुत ही मनोहारी थी.
  • इन मूर्तियो मे साँवले रूप मे श्री कृष्ण भगवान बाँसुरी बजा रहे है. इनमे से एक मूर्ति मण्डपिया ग्राम ले जायी गयी और वहा पर मंदिर बनाया गया । दूसरी मूर्ति भादसोड़ा ग्राम ले जायी गयी और वहा पर भी मंदिर बनाया गया । तीसरी मूर्ति को यही प्राकट्य स्थल पर ही मंदिर बना कर स्थापित की गयी । कालांतर में तीनो मंदिरों की ख्याति भी दूर-दूर तक फेली। आज भी दूर-दूर से हजारों यात्री प्रति वर्ष दर्शन करने आते हैं।

Sheetla Mata in Rajasthan

Sheetla Mata is worshiped in whole rajasthan and most of Northern state of India. The two main place are dhanoop in Bhilwara and Sheel-ki-Doongri Jaipur. Dhanop is a little village near Bhilwara with only the Sheetla Mata Temple to boast of. But it makes for an interesting visit as it's the brightest temple around. The walls and pillars are bright red while the roof is shining white. The floor is of marble, and a checkered one at that. In the composite is a neem (Azadirachta indica) tree which looks more like a Christmas tree. This is because of the hundreds of colorful pieces of cloth which devotees have tied around its branches in the belief that it will fulfill their wishes.
Sheetla Mata Fair in honour of the goddess of small-pox is held in all village and towns on Sheetla Ashtama day. The biggest fair is held in March-April every year at Seel-Ki-Doongri, a village in Jaipur district. There is a shrine dedicated to the Mata on a hillock, locally called Doongri. The present temple is said to have been erected by Maharaja Madho Singh of Jaipur. The fair is attended by one lakh or more people. 

Bhakti movement in Rajasthan

Bhakti movement in Rajasthan: Bhakti movement in Medieval India is responsible for the many rites and rituals associated with the worship of God by Hindus, Muslims and Sikhs of Indian subcontinent. Bhakti movement originated in ancient Tamil Nadu in 12th Century.  Nayanmars and Alvars played major role in Bhakti movement. It began to spread to the north during the late medieval ages when north India was under Islamic rule. The main period of Bhakti Movement in Rajasthan is early 16th Century to late 18th Century.  The Islamic rulers were pressing public to convert religion from Hindu to Islam. The Bhakti movement was counter to the prevalent caste ideology which was dividing Hinduism. So, the Bhakti movement has its own importance to save Hinduism. The movement was spontaneous and the mystics had their own versions of devotional expression which play a major role in Rajasthan.
Main Characteristics of Bhakti Movement:
One chief characteristic of the Bhakti movement can be mentioned as belief in one God. A devotee could worship God by love and devotion. The second characteristic of the Bhakti movement was that there was no need to worship idols or to perform elaborate rituals for seeking his grace. The third feature on which the Bhakti saints laid stress was the equality of all castes. There was no distinction of high or low as far as the devotion to God was concerned. The fourth feature was the emphasis, which these saints laid on Hindu-Muslim unity. According to these saints all men irrespective of their religion are equal in the eyes of God. The saints preached in the language of the common people like Rajasthani, Khadi and other local language. They did not use Sanskrit, which was the language of the cultured few. These saints laid stress on purity of heart and practice of virtues like truth, honesty, kindness, and charity. Some saints regarded God as formless or Nirguna while others consider him as having different forms or Saguna. Most of Bhakti Movement saint in Rajasthan are of Saguna Bhakta.
Important Bhakti Saints of Rajasthan:
1. Dadu Dayal
2. Sundar das
3. Meera Bai
4. Bhakhan
5. Wajind
6. Raghavdas
7. Lal Das
8. Charan Das
9. Movaji
10. Khwaja Moinuddin Chisti

Rajasthani Folk dances - Complete List

Rajasthani Folk dances - Complete List: Folk dances in Rajasthan are simple dances, and are performed to express joy. Folk dances of Rajasthan derived from various folk art cultures. Folk dances are performed for every possible occasion, to celebrate the arrival of seasons, birth of a child, a wedding, Festivals, Fairs and other auspicious occasions.  The dances are extremely simple with minimum of steps or movement.  Apart from the simple expressions and daring movements that add beauty to the dances, there are the vibrant and colorful costumes adorned by the dancers. The folk dances, found in limitless variations in Rajasthan, punctuate Rajasthan`s barrenness, turning the land into a fertile basin of colour and creativity and are an expression of human emotion as much as the folk music. Each region in Rajasthan has its own dance varieties and these dances stick strictly to their traditional flavors. Here is Complete List of Main Folk Dances of Rajasthan.


Main religious center of Vallabh sect in Rajasthan is ?

The main religious center of Vallabh sect in Rajasthan is ?
A. Nathdwara
B. Salemabad
C. Pushkar
D. Goga-medi
Ans: A

Rani Sati temple is situated at ?

Rani Sati temple is situated at ?
A. Sikar
B. Jhunjhunu
C. Karoli
D. Udaipur
Ans: B