धनोप माता मंदिर की जानकारी व इतिहास
यदि आप भीलवाड़ा के धनोप माता मंदिर के दर्शन और इसके पर्यटक स्थल की जानकारी लेना चाहते हैं तो हमारे इस लेख को पूरा जरूर देखें जिसमें हम आपको धनोप माता मंदिर का इतिहास, दर्शन का समय और यात्रा से जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण जानकारी के बारे में बताने वाले है –
मेवाड के शक्तिपीठो में एक प्राचीन शक्तिपीठ धनोप माता का मन्दिर भीलवाड़ा से 80 किलोमीटर की दूरी पर है, यह दिल्ली मुम्बई मेगा हाईवे व बिजयनगर -गुलाबपुरा रेलवे स्टेशन से 30 किलोमीटर की दूरी पर धनोप नामक एक छोटे से गांव में स्थित एक प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है ।
संगरिया गांव से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित शीतला माता को समर्पित धनोप माता मंदिर राजस्थान राज्य के प्रमुख मंदिर में से एक है, जहाँ हर साल बड़ी संख्या में भक्त शीतला माता के दर्शन के लिए आते है । इस मंदिर की वास्तुकला भी काफी आकर्षक है जो इसके अन्य आकर्षण के रूप में कार्य करती है ।
धनोप माता मंदिर एक ऊंचे टीले पर बना हुआ है, जो बेहद प्राचीन प्राकृतिक संरचना है । इस मंदिर में विक्रम संवत 912 भादवा सुदी 2 का शिलालेख भी उपस्थित है, जिससे इस बात का पता चला है कि यह मंदिर लगभग 1100 साल पुराना है । माता का मंदिर धनोप गाँव में स्थित है जिसकी वजह से इस मंदिर को धनोप माता मंदिर कहा जाता है । माना जाता है कि प्राचीन काल में धनोप एक समृद्ध नगर था जिसमें कई सुंदर मंदिर, भवन, बावड़ियाँ, कुण्ड बने थे । इस नगर में दोनों तरफ मानसी और खारी नदी बहती थी, जिनके अवशेष आज भी विद्यमान है । प्राचीन काल में यह नगर राजा धुंध की नगरी थी जिसे “ ताम्बवती ” नगरी भी बोला जाता था ।
आपको बता दें कि राजा के नाम से ही इस जगह का नाम धनोप पड़ा था । धनोपमाता राजा की कुल देवी थी । धनोप माता मंदिर में अन्नपूर्णा, चामुण्डा और कालिका माता की खूबसूरत मूर्ति स्थापित है जिनका मुख पूर्व दिशा की ओर है । इनके अलावा यहां पर भैरु जी का स्थान भी है और शिव-पार्वती, कार्तिकेय, गणेश व चौंसठ योगिनियों की मूर्तियाँ भी है । वैसे तो माता के दर्शन के लिए रोजाना हजारों तीर्थ यात्री आते हैं लेकिन नवरात्रा के दौरान यहां धनोप माता का मेला भी लगता है जिसमें लाखों की संख्या में यात्री शामिल होते हैं ।
जगत जननी माता धनोप के रोजाना पुष्प और पत्ती से पुजारी श्रृंगार करते हैं, माते श्री को पोशाक में 9 मीटर का चरना ( घाघरा ) और 9 मीटर की ओढ़नी ( चुनरी ) और आभूषणों व छत्र से श्रृंगार किया जाता हैं ।
माता के दरबार में भक्त गण अपनी मुराद पुरी होने के लिये पुष्प मांगते है, और माता उनकी मुराद पुरी करती हैं ।
धनोप माता मन्दिर ट्रस्ट द्वारा संचालित है, जिसके अध्यक्ष श्री निर्भय सिंह राणावत व सदस्य 5 मुख्य पुजारी हैं, यह ट्रस्ट देवी स्थान की साफ सफाई, लाईट, पानी, बर्तन सहित भक्त गणो की सभी प्रकार की सहायता करता है ।
धनोप माता मंदिर में माँ दुर्गा 5 रुप में विराजित हैं ( अन्नपूर्णा, अष्टभुजा, चामुण्डा, बीसभुजा और कालिका ) मन्दिर में 6 गुम्बद व एक शिखर ऊपरी भाग में स्थित हैं, निज मन्दिर के दाई तरफ ओगड़नाथ व बाई तरफ भगवान शिव अपने पूरे परिवार के साथ विराजमान हैं । मन्दिर के बाहर माता की सवारी सिंह विराजमान हैं, जो साक्षात सिंह के समान प्रतीत होती हैं ।
कहा जाता है की पृथ्वीराज चौहान कन्नोज के राजा जयचन्द से युद्ध के पश्चात विश्राम के लिये यहां रुके थे, उन्होंने माताराणी के दर्शन किये और यहां सभा भवन का निर्माण करवाया ।
प्रतिवर्ष नवरात्रा में यहाँ माताराणी का विशाल मेला भरता हैं, जिसमें दूर दूर से श्रद्धालु अपनी मुराद लेकर आते हैं, और माताराणी भी खुले मन से उनकी कामना पूर्ण करती हैं । यहां के पुजारी अपने ओसरे ( बारी ) के दौरान दो माह तक अपने घर पर नहीं जाते है, और नियमानुसार हर 2 माह में पुजारी अपने ओसरे के अनुसार बदल जाते हैं ।
धनोप माताजी का मंदिर सुबह 6 बजे से रात के 9 बजे तक दर्शन के लिए खुला रहता है ।
मेवाड़ धरा के शक्ति पीठों में धनोप माता मंदिर का नाम मुख्य रुप से आता हैं । सभी माता भक्त पोस्ट को शेयर करें ।
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