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पृथ्वीराज चौहान की जीवनी व इतिहास

पृथ्वीराज चौहान की जीवनी व इतिहास


पृथ्वीराज चौहान

पृथ्वीराज चौहान तृतीय का जन्म 1 जून 1163 के दिन चौहान वंश में अजमेर के शासक सोमेश्वर चौहान और कर्पूरदेवी के घर हुआ था । पृथ्वीराज की शिक्षा दिक्षा अजमेर में ही सम्पन्न हुई । यहीं पर उन्होंने युद्धकला और शस्त्र विद्या की शिक्षा अपने गुरु श्री राम जी से प्राप्त की । पृथ्वीराज चौहान छह भाषाओँ में निपुण थे ( संस्कृत, प्राकृत, मागधी, पैशाची, शौरसेनी और अपभ्रंश भाषा ) । इसके अलावा उन्हें मीमांसा, वेदान्त, गणित, पुराण, इतिहास, सैन्य विज्ञान और चिकित्सा शास्त्र का भी ज्ञान था । पृथ्वीराज चौहान के राजकवि कवि चंदरबरदाई की काव्य रचना “ पृथ्वीराज रासो ” में उल्लेख किया गया है कि पृथ्वीराज चौहान शब्दभेदी बाण चलाने, अश्व व हाथी नियंत्रण विद्या में निपुण थे ।
पिता सोमेश्वर चौहान की मृत्यु के पश्चात सन 1178 में पृथ्वीराज चौहान का राजतिलक किया गया । पृथ्वीराज चौहान ने राजा बनने के साथ ही दिग्विजय अभियान भी चलाया, जिसमें उन्होंने सन 1178 में भादानक देशीय, सन 1182 में जेजाकभुक्ति शासक को और सन 1183 में चालुक्य वंशीय शासक को पराजित किया ।
चंदरबरदाई रचित पृथ्वीराज रासो में उल्लेख है कि, पृथ्वीराज जब ग्यारह वर्ष के थे, तब उनका प्रथम विवाह हुआ था । तत्पश्चात प्रतिवर्ष उनका एक विवाह होता गया, जब पृथ्वीराज बाईस वर्ष के हुए उनके 12 विवाह हो चुके थे । उसके पश्चात् पृथ्वीराज जब छत्तीस वर्षीय हुए, तह उनका अन्तिम विवाह संयोगिता के साथ हुआ ।

महाराणा प्रताप की जीवनी व इतिहास

चित्तौड़गढ़ के किले का इतिहास

कुम्भलगढ़ दुर्ग का इतिहास वीडियो में 

संयोगिता स्वयंवर


PRITHVIRAJ CHAUHAN

मोहम्मद गौरी को तराइन के प्रथम युद्ध में हारने के बाद पृथ्वीराज की अद्भुत वीरता की प्रशंसा चारों दिशाओं में गूंज रही थी, तब संयोगिता ने पृथ्वीराज की वीरता का और सौन्दर्य का वर्णन सुना । उसके बाद वह पृथ्वीराज को प्रेम करने लगी और दूसरी ओर संयोगिता के पिता जयचन्द ने संयोगिता का विवाह स्वयंवर के माध्यम से करने की घोषणा कर दी । जयचन्द ने अश्वमेधयज्ञ का आयोजन किया था और उस यज्ञ के बाद संयोगिता का स्वयंवर होना था । जयचन्द अश्वमेधयज्ञ करने के बाद भारत पर अपने प्रभुत्व की इच्छा रखता था । जिसका पृथ्वीराज ने विरोध किया था । अतः जयचन्द ने पृथ्वीराज को स्वयंवर में आमंत्रित नहीं किया और उसने द्वारपाल के स्थान पर पृथ्वीराज की प्रतिमा स्थापित कर दी ।
दूसरी तरफ जब संयोगिता को पता लगा कि, पृथ्वीराज चौहान स्वयंवर में अनुपस्थित रहेंगे, तब उसने पृथ्वीराज को बुलाने के लिये खत लिखकर दूत को भेजा । जब पृथ्वीराज चौहान को पता चला कि संयोगिता उससे प्रेम करती है तत्काल कन्नौज नगर की ओर प्रस्थान किया ।
कन्नौज पहुँचकर संयोगिता को सूचना दी और वहाँ से भागने का तरीका सुझाया । स्वयंवर काल के समय जब संयोगिता हाथ में वरमाला लिए उपस्थित राजाओं को देख रही थी, तभी उनकी नजर द्वार पर स्थित पृथ्वीराज की मूर्ति पर पड़ी । उसी समय संयोगिता मूर्ति के समीप जाती हैं और वरमाला पृथ्वीराज की मूर्ति को पहना देती हैं । उसी क्षण घोड़े पर सवार पृथ्वीराज राज महल में आते हैं और संयोगिता को ले कर इन्द्रपस्थ ( वर्तमान दिल्ली का भाग ) की ओर निकल पड़े ।

तराइन का प्रथम युद्ध

मुहम्मद गोरी ने सन 1186 में गजनवी वंश के शासक से लाहौर की गद्दी छीन ली और साम्राज्य विस्तार के लिए भारत में प्रवेश की तैयारी करने लगा । सन 1190 तक सम्पूर्ण पंजाब पर मुहम्मद गौरी का अधिकार हो चुका था । गौरी ने तत्कालीन राजधानी भटिंडा को बनाया एयर वहीं से अपना राजकाज चलता था । इधर गौरी का भारत में बढ़ता प्रभाव पृथ्वीराज को चिंतित कर रहा था । पृथ्वीराज चौहान भी पंजाब में चौहान साम्राज्य स्थापित करना चाहता था और गौरी के रहते यह असंभव था । साम्राज्य विस्तार की यह लालसा युद्ध में बदल गई । फलस्वरूप गौरी से निपटने के लिए पृथ्वीराज चौहान अपनी विशाल सेना के साथ पंजाब की ओर रवाना हो । रास्ते में पड़ने वाले किलों हांसी, सरस्वती और सरहिंद के किलों पर पृथ्वीराज चौहान ने अपना अधिकार कर लिया । इसी बीच उसे सूचना मिली कि पीछे से अनहीलवाडा में विद्रोहियों ने विद्रोह कर दिया है । पृथ्वीराज पंजाब से वापस अनहीलवाडा लौटे और विद्रोह को दबाया । इधर गौरी ने आक्रमण करके जीते हुए सरहिंद के किले को पुन: अपने कब्जे में ले लिया ।
विद्रोह को दबाकर जब यह देख कर पृथ्वीराज वापस पंजाब की ओर लौटने लगा, गौरी भी अपनी सेना के साथ आगे बढ़ा । दोनों सेनाओं के बीच सरहिंद के किले के पास तराइन नामक स्थान पर सन 1191 में यह युद्ध लड़ा गया । तराइन के इस पहले युद्ध में गौरी को करारी हार का सामना करना पड़ा । गौरी के सैनिक प्राण बचा कर भागने लगे, पृथ्वीराज की सेना ने 80 मील तक इन भागते तुर्कों का पीछा किया । मोहम्मद गौरी को कैद कर लिया गया परंतु मानवीय धर्म निभाते हुए पृथ्वीराज ने जान बख्श दी । इस विजय से सम्पूर्ण भारतवर्ष में पृथ्वीराज की धाक जम गयी और उनकी वीरता, धीरता और साहस की कहानी सुनाई जाने लगी ।
पृथ्वीराज चौहान कालीन सिक्के

तराइन का द्वितीय युद्ध

पृथ्वीराज चौहान द्वारा 1191 में राजकुमारी संयोगिता का स्वयंवर में से हरण कर कन्नौज से ले जाना राजा जयचंद को बुरी तरह कचोट रहा था और वह बदला लेने की फिराक में था । जब उसे पता चला की मुहम्मद गौरी भी पृथ्वीराज से अपनी पराजय का बदला लेना चाहता है तो उसने गौरी से गठबंधन के लिया । इस सबसे अंजान पृथ्वीराज को जब ये सूचना मिली की गौरी एक बार फिर युद्ध की तैयारियों में जुटा हुआ तो उसने सहयोगी राजपूत राजाओं से सैन्य सहायता का अनुरोध किया, परन्तु संयोगिता के हरण के कारण बहुत से राजपूत राजा पृथ्वीराज के विरोधी बन चुके थे । वे कन्नौज नरेश जयचंद के संकेत पर गौरी के पक्ष में युद्ध करने के लिए तैयार हो गए ।
सन 1192 में एक बार फिर पृथ्वीराज और गौरी की सेना तराइन के क्षेत्र में टकराई । हालांकि इस युद्ध में पृथ्वीराज की ओर से गौरी के मुकाबले दोगुने सैनिक थे । परंतु इस बार गौरी पिछली हार के सबक सीखकर आया था । पृथ्वीराज चौहान की सैन्य ताकत उसके हाथी थे, गौरी के घुड़सवारों ने आगे बढ़कर पृथ्वीराज की सेना के हाथियों को घेर लिया और उन पर बाण वर्षा शुरू कर दी । घायल हाथी घबरा कर पीछे हटे और अपनी ही सेना को रोंदना शुरू कर दिया । इस युद्ध में पृथ्वीराज की हार हुई । पृथ्वीराज चौहान और उसके राज कवि चंदबरदाई को बंदी बना लिया गया । पृथ्वीराज की हार से गौरी का दिल्ली, कन्नौज, अजमेर, पंजाब और सम्पूर्ण भारतवर्ष पर अधिकार हो गया । साथ ही जयचंद को कन्नौज से हाथ धोना पड़ा । इस युद्ध के पश्चात भारत में इस्लामी साम्राज्य स्थापित हो गया ।
PRITHVIRAJ CHAUHAN


पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु ( 11 मार्च 1192 )

पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के सम्बंध में इतिहासकारों के अलग अलग मत है, सबसे प्रचलित मत के अनुसार गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को कैद करने के पश्चात ' इस्लाम ' धर्म स्वीकारने को विवश किया । पृथ्वीराज चौहान और चंदरबरदाई को तरह तरह से शारीरिक यातना दी गई, परन्तु पृथ्वीराज ' इस्लाम ‘ धर्म के अस्वीकार पर दृढ़ संकल्प थे । गौरी ने पृथ्वीराज चौहान की आँखें गर्म सरियों से फुड़वा दी फिर भी इस्लाम कबूलवाने में नाकाम रहा ।  अतः गौरी ने कूटनीति पूर्वक पृथ्वीराज को ' इस्लाम ' स्वीकार कराने हेतु षड्यन्त्र रचा । गौरी ने अपने मंत्री प्रताप सिंह को षड्यंत्रकारी बताकर पृथ्वीराज के समीप जेल में भेजा । प्रताप सिंह का उद्देश्य था कि, किसी भी प्रकार से पृथ्वीराज को ' इस्लाम ' धर्म का स्वीकार करने के लिये तैयार । प्रताप सिंह पृथ्वीराज से मेल मिलाप बढ़ाता रहा । पृथ्वीराज ने प्रताप सिंह पर विश्वास करके उसे अपने मन की व्यथा बताई और कहा कि इस्लाम कबूलने से मरना बेहतर समझूँगा । पृथ्वीराज चौहान ने प्रताप सिंह को अपनी शब्दभेदी बाण की योजना बताई ।
" मैं गौरी का वध करना चाहता हूँ " पृथ्वीराज ने प्रताप सिंह को अपनी योजना समझाते हुए कहा । पृथ्वीराज ने आगे कहा कि “ मैं शब्दभेदी बाण चलाने में माहिर हूँ । तुम किसी तरह मेरी इस विद्या का प्रदर्शन देखने के लिए गौरी को तैयार करो ।“
प्रताप सिंह ने पृथ्वीराज की सहायता करने के स्थान पर गौरी को सारी योजना बता दी । पृथ्वीराज की योजना जब गौरी ने सुनी, तो उसके मन में क्रोध के साथ कौतूहल भी उत्पन्न हुआ । उसने कल्पना भी नहीं कि थी कि कोई भी अंधा व्यक्ति ध्वनि सुनकर लक्ष्य भेदने में सक्षम हो सकता है । गौरी ने शब्दभेदी बाण का प्रदर्शन देखना चाहा ।
पृथ्वीराज चौहान तो पहले ही तैयार था, चंदबरदाई के साथ अखाड़े में पहुंच गए इधर गौरी ने अपने स्थान पर हूबहू अपने जैसी मूर्ति तैयार कर रखवा दी । गौरी ने जब लक्ष्य भेदने का आदेश दिया ।
चंदरबरदाई ने लोहे की मूर्ति को गौरी समझते हुए कहा “ चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण ! ता ऊपर सुल्तान है मत चुके चौहान !!”
सचमुच नहीं चुका चौहान, पृथ्वीराज ने प्रत्यंचा खेंची और पूरी ताकत से बाण चला दिया । बाण सनसनाता हुआ गौरी रूपी मूर्ति से टकराया और मूर्ति को दो भागों में तोड़ दिया ।
देशद्रोही प्रताप सिंह के कारण पृथ्वीराज का अंतिम प्रयास भी विफल रहा । हसन निजामी के वर्णन अनुसार, उसके पश्चात क्रोधित गौरी ने पृथ्वीराज को मारने का आदेश दिया । उसके पश्चात एक सैनिक ने तलवार से पृथ्वीराज की हत्या कर दी । इस प्रकार अजमेर में पृथ्वीराज की जीवनलीला समाप्त हो गई ।

कांग्रेस ने जीती राजस्थान उपचुनाव 2018 में तीनों सीटें

राज्य के दो संसदीय क्षेत्रों और एक विधानसभा क्षेत्र मेें हुए उप चुनाव का परिणाम निर्वाचन विभाग ने 1 फ़रवरी को घोषित कर दिया गया। मुख्य निर्वाचन अधिकारी श्री अश्विनी भगत ने बताया कि राज्य के अलवर और अजमेर में संसदीय क्षेत्र और मांडलगढ़ के विधानसभा क्षेत्र में हुए उप चुनाव में तीनों सीटों पर इंडियन नेशनल कांग्रेस के उम्मीदवार विजयी हुए। उन्होंने बताया कि अजमेर से कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी श्री रघु शर्मा, अलवर से डॉ. करण सिंह यादव और मांडलगढ़ से श्री विवेक धाकड़ को विजय प्राप्त हुई है।मतगणना के बाद घोषित नतीजों के अनुसार अलवर लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस के डॉ. करण सिंह यादव ने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार और अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी डॉ. जसवंत सिंह यादव को 1 लाख 96 हजार 496 मतों से हराया। श्री करण सिंह को 6 लाख 42 हजार 416 मत मिले जबकि डॉ. जसवंत सिंह यादव को 4 लाख 45 हजार 920 मत प्राप्त हुए। वहीं 15 हजार 93 मतदाताओं ने नोटा का भी इस्तेमाल किया। डॉ. करण सिंह को 57.73 प्रतिशत वोट मिले, जबकि डॉ. जसवंत सिंह को 40.07 प्रतिशत वोट मिले। वहीं 15 हजार 93 मतदाताओं ने नोटा को भी चुना। शेष सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। इसी प्रकार अजमेर लोकसभा सीट पर इंडियन नेशनल कांग्रेस के श्री रघु शर्मा ने भारतीय जनता पाटी के श्री रामस्वरूप लांबा को 84 हजार 414 मतों से हराया। डॉ. रघु शर्मा को 6 लाख 11 हजार 514 मत मिले जबकि श्री लांबा को 5 लाख 27 हजार 100 मत प्राप्त हुए। वहीं 8 हजार 160 मतदाताओं दोनों ही दलों को मत ना देते हुए नोटा देने का फैसला किया। श्री रघु शर्मा को 50.98 प्रतिशत वोट मिले, जबकि श्री रामस्वरूप लांबा को 43.94 प्रतिशत वोट मिले।
मांडलगढ़ विधासभा के उप चुनाव में इंडियन नेशनल कांग्रेस के श्री विवेक धाकड़ ने भारतीय जनता पार्टी के श्री शक्तिसिंह हाड़ा को 12 हजार 976 मतों से शिकस्त दी। यहां पर कांग्रेस उम्मीदवार श्री विवेक धाकड़ को 70 हजार 146 मत मिले तथा भारतीय जनता पार्टी के श्री शक्तिसिंह हाड़ा को 57 हजार 170 मत प्राप्त हुए। श्री विवेक को 39.50 प्रतिशत वोट मिले, जबकि श्री हाड़ा को 32.19 प्रतिशत वोट मिले। वहीं 4 हजार 350 मतदाताओं ने नोटा को भी चुना। मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने बताया कि लोकसभा और विधानसभा उप चुनाव की मतगणना गुरुवार प्रातः 8 बजे संबंधित विधानसभा क्षेत्रसों के जिला मुख्यालयों पर प्रारम्भ हुई। मतगणना के बाद परिणाम घोषित किए गए। सबसे पहले मांडलगढ़ का नतीजा निकाला इसके बाद अलवर और फिर अजमेर का परिणाम घोषित किया गया। 

Radheshyam Garg appointed New RPSC chairman

Radhe Shyam Garg has been appointed new chairman of Rajasthan Public Service Commission (RPSC). The Rajasthan governor office announced Dr Garg’s appointment late on Friday. The post had been lying vacant for the past more two months after the former chairman Shyam Sundar Sharma retired in September. Chairman’s post is a constitutional one with the governor appointing the head. The term of the chairman and members is that of six years or 62 years of age, whichever is earlier. Garg will complete 62 in May, 2018. This means, he will serve the post for only six months. Former chairman, Shyam Sundar Sharma held the post for less than three months before retiring on September 28. He had replaced IAS officer Lalit K Panwar who held the post for nearly two years.
Garg, a native of Dholpur, has been associated with Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) and had been an office bearer for RSS’s Dholpur branch. RPSC, the body entrusted with the task of recruiting government employees was without a head after its chairman Shyam Sunder Sharma retired on September 28. The commission is an eight-member body, including the chairman. The chief minister Vasundhara Raje on December 13 had made announcement of 1.4 lakh government jobs under direct recruitment. A lion share of the recruitment will be done by the RPSC. Also, it now has to manage exams of more youth in coming days as applicants number is likely to grow in the wake of the government’s decision to increase age cap to 40 from 35 for youth taking competitive exams.

राजस्थान खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष शंभूदयाल बड़गूजर का निधन

केकड़ी से भाजपा के पूर्व विधायक व खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के मौजूदा अध्यक्ष शम्भू दयाल बडगूजर का 19 अगस्त को निधन हो गया है। मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे ने राजस्थान खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष  श्री शंभूदयाल बड़गूजर के निधन पर शोक व्यक्त किया है। मुख्यमंत्री ने स्व. बड़गूजर के परिजनों को ढांढस बंधाया। अपने शोक संदेश में श्रीमती राजे ने कहा कि श्री बड़गूजर मिलनसार एवं मृदुभाषी थे। 
खादी बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने खादी को बढ़ावा देने वाली कई योजनाओं और नवाचारों को लागू किया। इसका फायदा बुनकरों और खादी ग्रामोद्योग से जुड़ी संस्थाओं को मिला। राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त बड़गूर्जर पिछले तीन महीनों से अस्वस्थ थे। जयपुर के फोर्टीज अस्पताल में उनका इलाज चला, लेकिन देर रात को एसएमएस अस्पताल में इलाज के दौराने ही उन्होंने आखिरी सांस ली। भाजपा नेताओं में उनकी अपनी एक अलग छवि थी। 1993 के विधानसभा चुनाव में पूरे देश की राजनीत में अपना ऊंचा ओहदा रखने वाले कांग्रेस के दिग्‍गज नेता जगन्‍नाथ पहाड़िया को हराकर पूरे प्रदेश में अपनी अलग ही पहचान बनाई थी। बड़गूर्जर अपने पीछे दो बेटे और एक बेटी छोड़ गए हैं।

Sanwar Lal Jat passed away

Former Union minister and BJP parliamentarian Sanwar Lal Jat died at the All India Institute of Medical Sciences (AIIMS) in New Delhi early on 9th Aug 2017. He was 62. The Rajasthan politician, who had served as the minister of state for water resources in the Narendra Modi government, breathed his last at 6.15 am after being in coma for over a week. A five-time MLA, Jat was a mass leader and a close confidant of Rajasthan chief minister Vasundhara Raje.  
Born in a peasant’s family at Ajmer’s Gopalpura village, the politician made his Lok Sabha debut in 2014 by defeating Rajasthan Congress president Sachin Pilot from Ajmer.  The chairman of the state farmers’ commission, he frequently raised rural issues - mostly related to agriculture - in the Rajasthan assembly. Jat was a farmers’ leader who had made an immense contribution to the state as MLA, MP and minister.

डिजीटल ट्रांजेक्जशन में अजमेर जिला देश के सर्वश्रेष्ठ 5 जिलों में शामिल

नीति आयोग तथा इलेक्ट्रोनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा शुक्रवार को नई दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित डिजीधन मेला कार्यक्रम में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कैशलेस समाज के निर्माण तथा नोटबंदी के बाद किए गए समुचित इंतजामों के लिए अजमेर जिले को देश के प्रथम 5 जिलों में शामिल करते हुए अजमेर जिला कलक्टर श्री गौरव गोयल को सम्मानित किया। अजमेर के साथ ही गुजरात के राजकोट, आन्धर््रप्रदेश के कृष्णा तथा झारखण्ड के जमशेदपुर और बोकारो जिलों को भी इन्हीं मानकों के आधार पर सम्मानित किया गया है। इस अवसर पर सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद, राज्य मंत्री श्री पी.पी.चौधरी, नीति आयोग के उपाध्यक्ष श्री अरविंद पनगड़िया आदि उपस्थित थे। 
इन इंतजामों के लिए अजमेर को मिला सम्मान - पुष्कर मेले में शानदार इंतजाम देश में 8 नवम्बर को जब नोटबंदी घोषित हुई तब अजमेर में अन्तर्राष्ट्रीय पुष्कर मेला चल रहा था। जैसे ही नोटबंदी हुई। जिला कलक्टर श्री गौरव गोयल के नेतृत्व ने प्रशासन ने  पुष्कर मेले में कमान संभालते हुए विभिन्न वर्गों के साथ समन्वय स्थािपत किया तथा किसी तरह की अव्यवस्था उत्पन्न नहीं होने दी। यहां बैंकों, होटल एसोशिएसन, गाईड व देशी एवं विदेशी पर्यटकों के साथ समन्वय स्थापित कर व्यवस्था को संभाला गया। - जिला प्रशासन ने अजमेर डेयरी के साथ समन्वय स्थापित कर डेयरी बूथ संचालकों को डिजीटल पेमेंट के प्रति जागरूक किया तथा व्यवस्थाओं को लागू किया। - जिला प्रशासन ने नोटबंदी के दिनों में बैंकों में सुरक्षा एवं व्यवस्थाओं को बनाए रखने के लिए खुद पहल कर बैंकर्स व उपभोक्ताओं में सामंजस्य स्थापित किया तथा बैंकों के बाहर किसी तरह अव्यवस्था नहीं होने दी। - जिला प्रशासन ने मीडिया, व्यापारी, स्वयं सेवी संगठन, विद्यार्थी, अधिकारी व कर्मचारी आदि वर्गों को जागरूक किया तथा उनके साथ समन्वय स्थापित कर डिजीटल भुगतान की अवधारणा को विकसित किया। - सभी सरकारी कार्यालयों में कैश पेमेन्ट को हतोत्साहित कर डिजीटल पेमेंट लागू किया गया। - हाल ही में आयोजित ग्राम सेवक एवं छात्रावास अधीक्षक परीक्षाओं में कार्य करने वाले कर्मचारियों को डिजीटल पेमेंट किया गया। - जिले में रजिस्टर्ड 5 लाख मे से 3.50 लाख रूपे कार्ड एक्टिव करवाए गए। - अजमेर जिले में जवाहर रंगमंच में रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया के माध्यम से कार्यशाला आयोजित कर विभिन्न वर्गों को जागरूक किया गया। - सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को जागरूक किया गया। स्कूल, कॉलेजों व गांवो की चौपालों पर विशेष प्रचार अभियान चलाया गया। - जिले में नयागांव हरमाड़ा पहला कैशलेस गांव बनेगा। इसके साथ ही अजमेर व पुष्कर शहर तथा 26 गांवों को भी कैशलेस किया जाएगा।

अजमेर, जयपुर और जोधपुर को सोलर सिटी बनाने के प्रस्ताव केन्द्र द्वारा मंजूर

राजस्थान के अजमेर, जयपुर और जोधपुर शहरों को सोलर सिटी बनाने के प्रस्ताव को केन्द्र सरकार द्वारा मंजूरी प्रदान कर अजमेर के लिए, 50 लाख और जोधपुर के लिए, 43.50 लाख रूपये स्वीकृति प्रदान की है। जयपुर के लिए भी शीघ्र ही बजट आवंटन होने की उम्मीद है। उक्त जानकारी जयपुर सांसद श्री रामचरण बोहरा द्वारा लोकसभा में पूछे सवाल के जवाब में केन्द्रीय उर्जा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री पीयूष गोयल ने दी। उन्होंने बताया कि डवलपमेंट ऑफ सोलर पार्क्स एण्ड अल्ट्रा मेगा सोलर पॉवर प्रोजेक्ट स्कीम के अंतर्गत केन्द्र सरकार द्वारा राजस्थान में भाडला फेज-द्वितीय, सोलर पार्क (680 मेगावाट) भाडला फेज-तृतीय (1000 में मेगावाट), भाडला फेज-चार (500 मे मेगावाट), फलौदी पोकरण सोलर पार्क (1000 मे मेगावाट), फतहगढ़ प्रथम सोलर पार्क-प्रथम ब (321 मे मेगावाट) सोलर पार्क्स की स्वीकृति प्रदान की गई है। इससे राजस्थान में सोलर पॉवर क्षमता में काफी वृद्धि होगी।

राज्य स्तरीय जवाबदेही यात्रा, राजस्थान

राजस्थान में "राज्य स्तरीय जवाबदेही यात्रा" का आयोजन 1 दिसंबर 2015 से 9 मार्च 2016 तक राजस्थान के सभी जिलों में श्रीमती अरुणा रॉय एवं मज़दूर किसान शक्ति संगठन के स्वयंसेवकों एवं जनता द्वारा किया गया । राज्य स्तरीय जवाबदेही यात्रा के माध्यम से राज्य के प्रत्येक कस्बो व जिलो में नाटक, गायन व प्रदर्शन कर लोगो को जागृत किया जा रहा जिससे एक लोक तांत्रिक व्यवस्था में जनता को उनका हक मिले।  इसी क्रम में राज्य में संचालित सामाजिक सुरक्षा क्षेत्र के कानूनों/ नीतियों/ योजनाओ के प्रभावी क्रियान्वयन एवं कार्यवाही और जवाबदेही हेतु अभियान द्वारा समूचे राज्य में 100 दिवसीय राज्य स्तरीय जवाबदेही यात्रा निकली गयी। 

Subhash Lakhotia Sharwan Kumar Award to Shivkumar Basanwal

Shiv Kumar Basanwal from Ajmer will be honoured with "1st Subhash Lakhotia Sharwan Kumar”  cash award. President of The Academy Mr Gupta said that The Academy was founded by famous tax consultant Mr R.N.Lakhotia 25 years ago alongwith other eminent persons of Rajasthan,  Shri Rikahab Chand Jain of TT Industries, Shri Vishnu Hari Dalmia of Dalmia Cements and some other prominent members from Rajasthan are among the 25 founder members. Since then the academy is working for the betterment of Rajasthani community, to promote values, culture and cuisine of the beautiful state, he said.

बकरी विकास एवं चारा उत्पादन परियोजना, अजमेर ISGP, Ramsar (Ajmer)

बकरी विकास एवं चारा उत्पादन परियोजना, रामसर (अजमेर) । Indo Swiss Goat Development and Fodder Production Project (ISGP), Ramsar (Ajmer): Indo swiss Goat Development and Fodder Production Project (ISGP) was established in 1981 in Ramsar village of Ajmer district in Rajasthan through an agreement between the Government of India and Switzerland. ISGP was implemented through the Rajashtan state department of Animal husbandry with technical cooperation from inter-cooperation Berne.
The main objective of the project were to develop strategies for sustainable improvement of goat production in the semi-arid farming system of rajasthan in order to improve the income generating capacity and nutrition of families belonging to the weaker sections of the rural community.


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- राजस्थान के प्रमुख अनुसंधान केंद्र
 

National Research Centre on Seed Spices (ICAR), Ajmer | राष्ट्रीय मसाला बीज अनुसंधान केन्द्र, तबीजी (अजमेर)

राष्ट्रीय मसाला बीज अनुसंधान केन्द्र, तबीजी (अजमेर) । National Research Centre on Seed Spices (ICAR), Doomara Tabiji (Ajmer): National Research Centre on Seed Spices (ICAR), Ajmer was established to meet the research needs of the upcoming seed spices sector. The perspective plan visualizes germplasm conservation and management, bio-control, post harvest technology and product development. In addition to major seed spices crops coriander, fennel, fenugreek, cumin, the due attention is required to be paid to minor seed spices crops especially ajowan, dill, nigella, celery, caraway and anise also. National Research Centre on Seed Spices (ICAR), Ajmer is situated on Ajmer-Beawar Road in Tabiji Village near Ajmer city. 
For More details visit: www.nrcss.org.in

राजस्थान के प्रमुख अनुसंधान केंद्र | Research Centres in Rajasthan

राजस्थान के प्रमुख अनुसंधान केंद्र:
1. राष्ट्रीय सरसों अनुसंधान केन्द्र, सेवर (भरतपुर) । National Research Centre on Rapeseed-Mustard (NRCRM), Sevar (Bharatpur)
2. केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर (टोंक) । Central Sheep and Wool Research Institute (CSWRI), Avikanagar
3. राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, जोहड़बीड़ (बीकानेर) । National Research Centre on Camel, Bikaner
4. केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, अविकानगर (टोंक) । Central Institute for Research on Goats (CIRG), Avikanagar (Tonk)
5. बकरी विकास एवं चारा उत्पादन परियोजना, रामसर (अजमेर) । Goat Development and Fodder Production Project (ISGP), Ramsar (Ajmer)
6. केन्द्रीय पशुधन प्रजनन फार्म, सूरतगढ़ (श्रीगंगानगर) । Central cattle Breeding Farm, Suratgarh (Ganganagar)
7. केन्द्रीय ऊन विकास बोर्ड, जोधपुर । Central Wool Development Board, Jodhpur
8. राष्ट्रीय घोड़ा अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर । National Research Centre on Equines, Jorbeer, Bikaner
9. राज्य स्तरीय भैंस प्रजनन केन्द्र, वल्लभनगर (उदयपुर) । Buffalo Improvement at Livestock Research Station (LRS), Vallabhnagar (Udaipur)
10. शूकर फार्म,अलवर । Piggery Development Training Center, Alwar
11. राष्ट्रीय मसाला बीज अनुसंधान केन्द्र, तबीजी (अजमेर) । National Research Centre on Seed Spices (ICAR), Doomara Tabiji (Ajmer)
12. अखिल भारतीय खजूर अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर । Central Institute for Arid Horticulture (CIAH), Bikaner
13. शुष्क वन अनुसंधान संस्थान, जोधपुर । Arid Forest Research Institute (AFRI), (Jodhpur)
14. केन्द्रीय सूखा क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, जोधपुर । Central Arid Zone Research Institute (CAZRI),Basni, Jodhpur
15. केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीछवाल (बीकानेर) । Central Institute for Arid Horticulture (CIAH), Beechwal (Bikaner)
16. माणिक्यलाल वर्मा आदिम जाति शोध एवं सर्वेक्षण संस्थान, उदयपुर ।  Manikya Lal Verma Tribal Research and Training Institute, Udaipur
17. अरबी फारसी शोध संस्थान, टोंक । Maulana Abul Kalam Azad Arabic Persian Research Institute, टोंक
18. केन्द्रीय इलेक्ट्रॉनिकी अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान, पिलानी । Central Electronics Engineering Research Institute (CEERI), Pilani (Jhunjhunu)
19. रक्षा अनुसंधान प्रयोगशाला, जोधपुर । Defence Laboratory, Jodhpur

राजस्थान राज्य का निर्माण, एकीकरण के 7 चरण

राजस्थान राज्य का निर्माण एवं एकीकरण के 7 चरण
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पहला चरण ('मत्स्य यूनियन') 18 मार्च 1948:  सबसे पहले अलवर, भरतपुर, धौलपुर, व करौली नामक देशी रियासतों का विलय कर तत्कालीन भारत सरकार ने 1  1948 मे अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर 'मत्स्य यूनियन' के नाम से पहला संघ बनाया। 18 मार्च 1948 को मत्स्य संघ का उद़घाटन हुआ और धौलपुर के तत्कालीन महाराजा उदयभानसिंह को राजप्रमुख, महाराजा करोली को उपराज प्रमुख और अलवर प्रजामंडल के प्रमुख नेता श्री शोभाराम कुमावत को मत्स्य संघ का प्रधानमंत्री बनाया गया।  इसकी राजधानी अलवर रखी गयी थी। 
दूसरा चरण ('राजस्थान संघ') 25 मार्च 1948: राजस्थान के एकीकरण का दूसरा चरण 25  मार्च 1948 को स्वतंत्र देशी रियासतों कोटा, बूंदी, झालावाड, टौंक, डूंगरपुर, बांसवाडा, प्रतापगढ, किशनगढ और शाहपुरा को मिलाकर बने 'राजस्थान संघ' के बाद पूरा हुआ। राजस्थान संघ में विलय हुई रियासतों में कोटा बड़ी रियासत थी, इस कारण इसके तत्कालीन महाराजा महाराव भीमसिंह को राजप्रमुख बनाया गया। 
तीसरा चरण ('संयुक्त राजस्थान')18 अप्रैल 1948: राजस्थान संघ में उदयपुर रियासत का विलय कर 'संयुक्त राजस्थान' का निर्माण हुआ | पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा इसका उद्घाटन किया गया | महाराणा मेवाड –भूपालसिंह राजप्रमुख व् माणिक्यलाल वर्मा प्रधानमंत्री बने | उदयपुर को इस नए राज्य की राजधानी बनाया गया | कोटा महाराव भीमसिंह को उपराजप्रमुख बनाया गया |  
चौथा चरण ('वृहत राजस्थान'') 30 मार्च 1949: 30 मार्च, 1949 में जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर 'वृहत्तर राजस्थान संघ' बना था। यही राजस्थान की स्थापना का दिन माना जाता है। देशी रियासतों जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर का विलय करवाकर तत्कालीन भारत सरकार ने 30  मार्च 1949 को वृहत्तर राजस्थान संघ का निर्माण किया, जिसका उदघाटन भारत सरकार के तत्कालीन रियासती और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया।  हालांकि अभी तक चार देशी रियासतो का विलय होना बाकी था, मगर इस विलय को इतना महत्व नहीं दिया जाता, क्योंकि जो रियासते बची थी वे पहले चरण में ही 'मत्स्य संघ' के नाम से स्वतंत्र भारत में विलय हो चुकी थी। जयपुर महाराज सवाईमानसिंह को आजीवन राजप्रमुख, उदयपुर महाराणा भूपालसिंह को महाराज प्रमुख, कोटा के महाराज श्री भीमसिंह को उपराजप्रमुख व श्री हीरालाल शास्त्री को प्रधानमंत्री बनाया गया | श्री पी. सत्यनारायण राव की अध्यक्षता में गठित कमेठी की की सिफारिशों पर जयपुर को राजस्थान की राजधानी घोषित किया गया | हाई कोर्ट जोधपुर में, शिक्षा विभाग बीकानेर में, खनिज और कस्टम व् एक्साइज विभाग उदयपुर में, वन और सहकारी विभाग कोटा में एवँ कृषि विभाग भरतपुर में रखते का निर्णय किया गया|
पांचवा चरण ('वृहत संयुक्त राजस्थान') 15 अप्रैल 1949: 15 अप्रेल 1949 को भारत सरकार ने शंकरराव देव समिति की सिफारिश को ध्यान में रखते हुए मत्स्य संघ को वृहत राजस्थान में मिला दिया | भारत सरकार ने 18 मार्च 1948 को जब मत्स्य संघ बनाया था तभी विलय पत्र में लिख दिया गया था कि बाद में इस संघ का राजस्थान में विलय कर दिया जाएगा। इस कारण भी यह चरण औपचारिकता मात्र माना गया। भारत सरकार ने शंकरराव देव समिति की सिफारिश को ध्यान में रखते हुए मत्स्य संघ को वृहत राजस्थान में मिला दिया | वहां के प्रधानमंत्री श्री शोभाराम को शास्त्री मंत्रिमंडल में शामिल  कर लिया गया |
छठा चरण 'राजस्थान संघ' 26 जनवरी 1950:  भारत का संविधान लागू होने के दिन 26 जनवरी 1950 को सिरोही रियासत का भी विलय ग्रेटर राजस्थान में कर दिया गया। इस विलय को भी औपचारिकता माना जाता है क्योंकि यहां भी भारत सरकार का नियंत्रण पहले से ही था। दरअसल जब राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया चल रही थी, तब सिरोही रियासत के शासक नाबालिग थे।  सिरोही रियासत के एक हिस्से आबू देलवाडा को लेकर विवाद के कारण इस चरण में आबू व् देलवाडा तहसीलों को बम्बई प्रान्त और शेष भाग को राजस्थान में मिलाने का फेसला लिया गया |  लेकिन आबू और देलवाडा को बम्बई प्रान्त में मिलाने के कारण राजस्थान वासियों में व्यापक प्रतिक्रिया हुई | जिससे 6 वर्ष बाद राज्यों के पुनर्गठन के समय इन्हे वापस राजस्थान को देना पड़ा | 26 जनवरी,1950 को भारत के संविधान लागु होने पर राजपुताना के इस भू-भाग को विधिवत ‘राजस्थान’ नाम दिया गया |
सांतवा चरण ('वर्तमान राजस्थान') 1 नवंबर 1956: राज्य पुनर्गठन आयोग (श्री फजल अली की अध्यक्षता में गठित) की सिफारिशों के अनुसार सिरोही की आबू व् दिलवाडा तहसीलें, मध्यप्रदेश के मंदसोर जिले की मानपुरा तहसील का सुनेर टप्पा व अजमेर –मेरवाडा क्षेत्र राजस्थान में मिला दिया गया तथा राज्य के झालावाड जिले का सिरोंज क्षेत्र मध्यप्रदेश में मिला दिया गया |इस प्रकार विभिन्न चरणों से गुजरते हुए राजस्थान निर्माण की प्रक्रिया 1 नवम्बर, 1956 को पूर्ण हुई और इसी के साथ आज से राजस्थान का निर्माण या एकीकरण पूरा हुआ।  भारत सरकार के तत्कालीन देशी रियासत और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और उनके सचिव वी. पी. मेनन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। इनकी सूझबूझ से ही राजस्थान के वर्तमान स्वरुप का निर्माण हो सका।
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राजस्थान के शिलालेख

राजस्थान के प्रमुख शिलालेख:
=> बङली का शिलालेख: बङली, अजमेर में 443 ई राज्य का प्राचीन  शिलालेख जो ब्राह्मी लिपी में उत्किर्ण है
=> घोसुंडी का शिलालेख: ब्राह्मी लिपि में संस्कृत भाषा में रचित यह अभिलेख चित्तौड़गढ़ के घोसुडी नमक स्थान पर स्थित है जिसे सर्वप्रथम डी आर भंडारकर द्वारा पढा गया था।
=> घटियाला अभिलेख (861): प्रतिहार शासक कुक्कुक कर प्रकाश डालने वाले इस घटियाला जोधपुर में स्थित अभिलेख के रचनाकार कृष्णेश्वर थे
=> रणकपुर प्रशस्ति: नागरी लिपी में रचित इस अभिलेख का रचयिता देपाक था
=> कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति (1460): इस शिलालेख में महाराणा कुंभा के लेखन पर प्रकाश डाला गया है साथ ही कुंभा को दी गई दानगुरू,राजगुरू,शैलगुरू की उपाधियों का उल्लेख है । रचनकार महेश भट्ट थे ।
=> कणसव शिलालेख: कणसव, कोटा में 738 ई का शिलालेख जिसमे मौर्यौं के राजस्थान संबध का पता चलता है एवं मौर्य वंशी शासक 'धवल' का उल्लेख है
=> साम्भोली अभिलेख (646): यह साम्भोली, भेमट मेवाड़ के दक्षिण में स्थित है इसमे बाहर के लोगों के बसने स्थापत्य कला, स्थानीय भीलों आदि पर प्रकाश डालता है ।
=> मंडोर शिलालेख (685): मंडोर, जोधपुर की एक बावड़ी की शीला पर उत्कीर्ण है ।  
=> मंडोर शिलालेख (861): मंडोर, जोधपुर के विष्णु मंदिर में स्थित है । इस शिलालेख से प्रतिहार वंशी शाशकों के बारे में जानकारी मिलती है ।
=> आहड़ शिलालेख (977): इस अभिलेख में मेवाड़ के शाशकों अल्लट, नरवाहन, शक्तिकुमार के बारे में जानकारी मिलती है ।
=> बिजोलिया (भीलवाड़ा) का शिलालेख, 1170 ई.
=> चीरवा (उदयपुर) का शिलालेख, 1273 ई.
=> जमवा रामगढ़ (जयपुर) प्रशस्ति, 1613 ई.
=> अपराजित का शिलालेख, नागदा (मेवाड़)- 661 ई.
=> बडवा स्तम्भ लेख, बडवा, अंता (बारां)- 238-239  ई.
=> बिचपुरिया यूप स्तम्भ लेख,बिचपुरिया मंदिर, उनियारा टौंक- 274 ई.
=> गंगधार का लेख, गंगधार (झालावाड़)- 423 ई.
=> रसिया जी की छमी का शिलालेख 1274 ई.
=> आबू का अचलेश्वर का शिलालेख, 1285 ई.
=> समिधेश्वर (चित्तौड़गढ़) के मंदिर का शिलालेख, 1428 ई.
=> दिलवाड़ा (आबू) का शिलालेख, 1434 ई.
=> भ्रामर माता का लेख, छोटी सादड़ी (प्रतापगढ़)- 490 ई.

तेजाजी | Tejaji Maharaj

लोक देवता तेजाजी (Tejaji) का जन्म नागौर जिले में खड़नाल गाँव में ताहरजी (थिरराज) और रामकुंवरी के घर माघ शुक्ला, चौदस संवत 1130 यथा 29 जनवरी 1074 को जाट परिवार में हुआ था ।
  • तेजाजी राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात प्रान्तों में लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं।  किसान वर्ग अपनी खेती की खुशहाली के लिये तेजाजी को पूजता है। तेजाजी के प्रमुख मंदिरों में खरनाल नागौर में तेजाजी का मंदिर एवं सुरसुरा अजमेर में तेजाजी का धाम है
  • लोग तेजाजी के मन्दिरों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं और दूसरी मन्नतों के साथ-साथ सर्प-दंश से होने वाली मृत्यु के प्रति अभय भी प्राप्त करते हैं।  तेजाजी के देवरो में साँप के काटने पर जहर चूस कर निकाला जाता है तथा तेजाजी की तांत बाँध का सर्पदंश का इलाज किया जाता है।
  • तेजाजी की घोड़ी का नाम 'लीलण' था 
  • तेजाजी की कहानी:  एक बार तेजाजी को उनकी भाभी ने तानों के रूप में यह बात उनसे कह दी तब तानो से त्रस्त होकर अपनी पत्नी पेमल को लेने के लिए घोड़ी 'लीलण' पर सवार होकर अपनी ससुराल पनेर गए। रास्ते में तेजाजी को एक साँप आग में जलता हुआ मिला तो उन्होंने उस साँप को बचा लिया किन्तु वह साँप जोड़े के बिछुड़ जाने कारण अत्यधिक क्रोधित हुआ और उन्हें डसने लगा तब उन्होंने साँप को लौटते समय डस लेने का वचन दिया और ससुराल की ओर आगे बढ़े। वहाँ किसी अज्ञानता के कारण ससुराल पक्ष से उनकी अवज्ञा हो गई। नाराज तेजाजी वहाँ से वापस लौटने लगे तब पेमल से उनकी प्रथम भेंट उसकी सहेली लाछा गूजरी के यहाँ हुई। उसी रात लाछा गूजरी की गाएं मेर के मीणा चुरा ले गए। लाछा की प्रार्थना पर वचनबद्ध हो कर तेजाजी ने मीणा लुटेरों से संघर्ष कर गाएं छुड़ाई। इस गौरक्षा युद्ध में तेजाजी अत्यधिक घायल हो गए। वापस आने पर वचन की पालना में साँप के बिल पर आए तथा पूरे शरीर पर घाव होने के कारण जीभ पर साँप से कटवाया। किशनगढ़ के पास सुरसरा में सर्पदंश से उनकी मृत्यु भाद्रपद शुक्ल 10 संवत 1160, तदनुसार 28 अगस्त 1103 हो गई तथा पेमल ने भी उनके साथ जान दे दी। उस साँप ने उनकी वचनबद्धता से प्रसन्न हो कर उन्हें वरदान दिया। इसी वरदान के कारण तेजाजी भी साँपों के देवता के रूप में पूज्य हुए।

Barli Inscription Rajasthan

Barli Inscription (बरली शिलालेख) and Fort  is situated in Ajmer district of Rajasthan. Barli (Badli) is a Village in Bhinay Tehsil in District Ajmer, Rajasthan. Dr Gauri Shankar Hirachandra Ojha obtained in 1912 a fragmentary Inscription of year 443 BC which along with Piprava Inscription of 487 BC are the most ancient Indian Inscriptions. It is in Brahmi script and preserved in Ajmer Museum. 
Fort Barli is a heritage hotel now days on NH-79, Bundi Road in Ajmer. The Rathore dynasty of Barli traces its descent from Rao Maldeo of Marwar (Jodhpur). 

Quiz.  राजस्थान में "बरली शिलालेख" दूसरी शताब्दी ई.पू. को सबसे पुराना शिलालेख कहा जाता है, बरली किस जिले में स्थित है?
A. उदयपुर
B. जयपुर
C. अजमेर
D. गंगानगर
Ans: C