बगड़ावत भारत भाग 2 - भगवान देवनारायण जी जन्म कथा भाग 2

भगवान देवनारायण जी कथा भाग 2


BHAGWAN DEVNARAYAN KATHA

बगड़ावत भारत कथा भाग 1


कथा के अनुसार जब बाघ सिंह बाथ भरते हैं उनकी बाहों में 13 लड़कियां समा जाती है । जिससे बाघ सिंह शादी करने को तैयार हो जाते है । 12 लड़कियों से स्वयं शादी कर लेते हैं और एक लड़की अपने ब्राह्मण मित्र को जो फैरे करवाता है, उसको दे देते है । उन्ही बारह औरतों से बाघ जी की 24 पुत्र होते हैं, वही 24 भाई बगड़ावत कहलाते हैं ।

बगड़ावत गुर्जर जाति से सम्बंध रखते थे और इनका मुख्य व्यवसाय पशुपालन था । वे इस कार्य में प्रवीण थे और उन्होनें अपनी गायों की नस्ल भी सुधारी थी । उनके पास बहुत बढिया नस्ल की गायें थी । गाथा के अनुसार उनके पास काबरा नामक उत्तम नस्ल का सांड था । उनके पास 4 बढिया नस्ल की गायें थी जिनमें सुरह, कामधेनु, पारवती और नांगल गायें थी । इनकी हिफाजत और सेवा में ये लोग लगे रहते थे । बगड़ावत भाईयों में सबसे बड़े तेजाजी, सवाई भोज, नियाजी, बहारावत आदि थे । सवाई भोज की शादी मालवा में साडू खटानी के साथ होती है ।

साडू खटानी के यहां से भी दहेज में बगड़ावतों को पशुधन मिलता है । एक ग्वाला जिसका नाम नापा ग्वाल होता है उसे बगड़ावत साडू के पीहर मालवा से लाते है । नापा ग्वाल इनके पशुओं को जंगल में चराने का काम करता था । इसके अधीन भी कई ग्वाले होते है जो गायों की देखरेख करते थे । गाथा के अनुसार बगड़ावतों के पास 1,80,000 गायें और 1444 ग्वाले थे ।

24 बगड़ावत भाई अपने ग्वालों के साथ गायें चराते थे । एक बार सवाई भोज ने ध्यान दिया कि उनकी गायों में एक गाय ऐसी होती है जो रोज सुबह उनकी गायों के साथ शामिल हो जाती थी और शाम को लौटते समय वह अलग चली जाती है । यह देख सवाई भोज अपने भाई नियाजी को कहते हैं कि इस गाय के पीछे जाओ और पता करो की यह गाय किसकी है और कहां से आती हैं ? और इसके मालिक से अपनी ग्वाली का मेहनताना लेकर आना ।

नियाजी उस गाय के पीछे-पीछे जाते हैं । वह गाय एक गुफा में प्रेवेश कर जाती हैं । नियाजी भी पीछे पीछे वहां पहुंच जाते हैं और देखते है कि गुफा में एक साधु धूनी के पास बैठेकर साधना कर रहे हैं । नियाजी साधु से पूछते हैं कि महाराज यह गाय आपकी है ? साधु कहते है, हां गाय तो हमारी ही है । नियाजी कहते है आपको इसकी गुवाली देनी होगी । यह रोज हमारी गायों के साथ चरने आती है । हम इसकी देखरेख करते हैं ।

साधु कहता है कोई बात नहीं बेटा ग्वाली भी दे देंगे, चलो अपनी झोली फैलाओ । नियाजी अपनी कम्बल की झोली फैलाते हैं । बाबा रुपनाथजी धूणी में से धोबे भर धूणी की राख नियाजी की झोली में डाल देते हैं और कहते है" बेटा मेरे पास तो यही है देने के लिए ।"

नियाजी भी बिना कुछ कहे राख लेकर वहां से अपने घर की ओर चल देते हैं । रास्ते में साधु के द्वारा दी गई धूणी की राख को गिरा देते हैं और घर आकर राख लगे कम्बल को खूंटीं पर टांक देते हैं । जब रात होती है तो अन्धेरें में खूंटीं परटंगे कम्बल से प्रकाश फूटता है । तब सवाई भोज देखते हैं कि उस कम्बल में कहीं-कहीं सोने एवं हीरे जवाहरात लगे हुए हैं तो वह नियाजी से सारी बात पूछते हैं । नियाजी सारी बात बताते हैं । बगड़ावतों को लगता है कि जरुर वह साधु कोई करामाती पहुंचा हुआ है । यह जानकर कि वो राख मायावी थी, सवाई भोज अगले दिन उस साधु की गुफा में जाते हैं और रुपनाथजी को प्रणाम करके बैठ जाते हैं, और बाबा रुपनाथजी की सेवा करते हैं । यह क्रम कई दिनो तक चलता रहता है । एक दिन बाबा रुपनाथजी निवृत होने के लिये गुफा से बाहर कहीं जाते हैं । पीछे से सवाई भोज गुफा के सभी हिस्सो में घूम फिर कर देखते हैं । उन्हें एक जगह इन्सानों के कटे सिर दिखाई देते हैं । वह सवाई भोज को देखकर हंसते हैं । सवाई भोज उन कटे हुए सिरों से पूछते हैं कि हँस क्यों रहे हो ? तब उन्हें जवाब मिलता है कि तुम भी थोड़े दिनों में हमारी जमात में शामिल होनेवाले हो, यानि तुम्हारा हाल भी हमारे जैसा ही होने वाला है । हम भी बाबा की ऐसे ही सेवा करते थे । थोड़े दिनों में ही बाबा ने हमारे सिर काट कर गुफा में डाल दिए । ऐसा ही हाल तुम्हारा भी होने वाला है । यह सुनकर सवाई भोज सावधान हो जाते हैं ।

JODHPURIYA

थोड़ी देर बाद बाबा रुपनाथ वापस लौट आते हैं और सवाई भोज से कहते हैं कि मैं तेरी सेवा से प्रसन्न हुआ । आज मैं तेरे को एक विद्या सिखाता हूं । सवाई भोज से एक बड़ा कड़ाव और तेल लेकर आने के लिये कहते हैं । सवाई भोज बाबा रुपनाथ के कहे अनुसार एक बड़ा कड़ाव और तेल लेकर पहुंचते हैं । बाबा कहते हैं कि आग जलाकर कड़ाव उस पर चढ़ा दे और तेल कड़ाव में डाल दे । तेल पूरी तरह से गर्म हो जाने पर रुपनाथजी सवाई भोज से कहते हैं कि आजा इस कड़ाव की परिक्रमा करते हैं । आगे सवाई भोज और पीछे बाबा रुपनाथजी कड़ाव की परिक्रमा शुरु करते हैं । बाबा रुपनाथ सवाईभोज के पीछे-पीछे चलते हुये एकदम सवाईभोज को कड़ाव में धकेलने का प्रयत्न करते हैं । सवाईभोज पहले से ही सावधान होते हैं, इसलिए छलांग लगाकर कड़ाव के दूसरी और कूद जाते हैं और बच जातेहैं । फिर सवाईभोज बाबा रुपनाथ से कहते हैं महाराज अब आप आगे आ जाओ और फिर से परिक्रमा शुरु करते हैं । सवाईभोज जवान एवं ताकतवर होते हैं । इस बार वह परिक्रमा करते समय आगे चल रहे बाबा रुपनाथ को उठाकर गर्म तेल के कड़ाव में डाल देते हैं । बाबा रुपनाथ का शरीर कड़ाव में गिरते ही सोने का हो जाता है । वह सोने का पोरसा बन जाता है ।

तभी अचानक आकाश से आकाशवाणी होती है कि सवाई भोज तुम्हारी बारह वर्ष की काया है और बारह वर्ष की ही माया है । यानि बारह साल की ही बगड़ावतों की आयु है और बाबा रुपनाथ की गुफा से मिले धन की माया भी बारह साल तुम्हारे साथ रहेगी । और एक आकाशवाणी यह भी होती है की यह जो सोने का पोरसा है इसको तुम पांवों की तरफ से काटोगे तो यह बढेगा और यदि सिर की तरफ से काटोगे तो यह घटता जायेगा । इस धन को तुम लोग खूब खर्च करना, दान-पुण्य करना । इधर बाबा रुपनाथ भी धूणी की राख से पुनः जीवित हो जाते हैं और सवाई भोज को अपना शिष्य बनाते हैं ।

सवाई भोज को बाबा रुपनाथ की गुफा से भी काफी सारा धन मिलता है जिनमें एक जयमंगला हाथी, एक सोने का खांडा, बुली घोड़ी, सुरह गाय, सोने का पोरसा, कश्मीरी तम्बू इत्यादि । दुर्लभ चीजें लेकर सवाई भोज घर आ जाते हैं ।

क्रमशः...............

बगड़ावत भारत कथा जारी है भाग 3

BAGDAWAT KATHA

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